अयोध्या। जिसके शील में अर्थात सहज स्वभाव में धर्म हो वह धर्मात्मा है। और जो अपनी अनन्त इच्छाओं की पूर्ति के साधन के रूप में धर्म करता हो वह पुण्यात्मा है।उक्त बातें प्रख्यात कथावाचक राधेश्याम शास्त्री जी ने कौशलपुरी कालोनी फेज 1 पानी टंकी के निकट आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्धितीय दिवस कही।राधेश्याम शास्त्री ने कहा कि धर्मात्मा और पुण्यात्मा में बडा़ अन्तर होता है। रावण ,कंस, दुर्योधन, प्रतापभानु , ये सब पुण्यात्मा तो हैं पर धर्मात्मा नही हैं। उन्होंने कहा कि दशरथ जी, नन्द यशोदा, देवकी वसुदेव, भीष्म, विदुर धर्मात्मा हैं। धार्मिक व्यक्ति का अर्थ है समर्पित व्यक्ति।उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है। अगर जीवन दुयोंधन के पक्ष में खड़ा कर दे, तो वह वहीं खड़ा हो जाएगा। कथाव्यास राधेश्याम जी ने कहा कि अगर जीवन अर्जुन के पक्ष में खड़ा कर दे, तो वह वहीं खड़ा हो जाएगा। धार्मिक व्यक्ति तो निमित्त—मात्र है। इसलिए जहां परमात्मा की इच्छा हो, वहीं खड़ा हो जाता है। उसने अपनी तरफ से निर्णय लेना छोड़ दिया है।