उदासीनाचार्य आत्मनिष्ठ दृढ़ संकल्प योग साधाना व पारदर्शिता के धनी: डा भरत दास

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September 5, 2022

श्रीचंद्र भगवान ने भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिये शैव, वैष्णव, शाक्त, सौर तथा गणपत्य मतावलंवियों को संगठित कर पंचदेवोपासना की प्रतिष्ठा की

संगत उदासीन ऋषि आश्रम रानोपाली मंदिर सनातन धर्म की धरोहर

श्रीचंद्र भगवान का 528वां प्रकाशोत्सव सादगीपूर्ण माहौल मे मनाया गया

अयोध्या। उदासीन संप्रदाय के संस्थापक भगवान श्री चंद्र जी का पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार व प्रसार में समर्पित रहा। उनके द्वारा उदासीन आश्रमों का शिलान्यास करके सनातन धर्म को नई गति देने का प्रयास किया गया। अयोध्या में स्थापित संगत उदासीन ऋषि आश्रम जो कि सनातन धर्म की धरोहर हैं। यहां पर सनातन परंपरा को प्रफुल्लित धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन गुरुकुल प्रथा को जीवित रखने व समाज की सेवा के कार्य किए जा रहे है। 5 सितंबर यानी आज सोमवार को भगवान श्री चंद्र जी का 528वां जयंती महोत्सव मनाया गया। बाबा संगत बक्स जी की तपोस्थली उदासीन ऋषि आश्रम के युवा महंत डॉ भरत दास जी महाराज ने बताया कि श्री चंद्र भगवान का प्रकाशोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। सबसे पहले आश्रम की परंपरा के अनुसार अभिषेक पूजन अर्चन किया गया। 

 श्री दास ने बताया की उदासीनाचार्य भगवान श्री चंद्र जी महाराज का जन्म प्रादुर्भाव भाद्रपद शुक्ल नवमी विक्रम संवत 1551 में माता सुलक्ष्णा के गर्भ से गुरु नानक जी के पुत्र के रूप में जन्म लिया था।।श्री चंद्र जी महाराज आत्मनिष्ठ दृढ़ संकल्प योग साधाना व पारदर्शिता के धनी थे। भगवान श्री चंद्र महाराज ने जन कल्याणार्थ अनेक रचनाएं की हैं। श्री भरत दास जी महाराज ने बताया की अयोध्या में श्री चंद्र भगवान की ही प्रेरणा से पूरा आश्रम पुष्पित पल्लवित हो रहा है और आज उनकी 528 वी जयंती उत्सव मनाया जा रहा है। महंत डा भरत दास ने कहा कि श्रीचंद्र भगवान ने भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिये शैव, वैष्णव, शाक्त, सौर तथा गणपत्य मतावलंवियों को संगठित कर पंचदेवोपासना की प्रतिष्ठा की। उन्होंने कहा कि उदासीनाचार्य जी वैदिक कर्मकाण्ड के पूर्ण समर्थक थे। उन्होनें ज्ञान-भकित के समुच्चय सिद्धांत को प्रतिपादित किया। उन्होनें करामाती फकीरों, सूफी संतों, अघोरी तांत्रिकों और विधर्मियों को अपनी अलौकिक सिद्धियों और उपदेशों से प्रभावित कर वैदिक धर्म की दीक्षा दी। बाह्माडम्बर, मिथ्याचार अवैदिक मत-मतान्तरों, पाखंडों का खंडन कर श्रुति-स्मृति सम्मत आचार-विचार की प्रतिष्ठा की। भावात्मक एवं वैचारिक धरातल पर जीव मात्र की एकता का प्रतिपादन किया। जाति-पांति, ऊँच-नीच, छोटे-बड़े के भेदभाव को समाप्त कर मानव मात्र की मुकित की राह दिखाई।

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