कनक महल में इन्द्रदेवजी सरस्वती जी महाराज के श्रीमुख से बह रही श्रीराम कथा की अमृत वर्षा

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April 8, 2022

अयोध्या। गौ सेवार्थ श्री राम कथा एवं पारायण के अवसर पर आज क्रांतिकारी युगप्रवर्तक यज्ञपीठाधीश्वर विद्यावाचस्पति संत इन्द्रदेवजी सरस्वती जी महाराज के मुखारविंद से सरयू रूपी श्री रामकथा की रसधारा के सप्तम दिवस की कथा में  प्रतिदिन की भाँति श्री रामायणी महाराज जी की विशेष उपस्थिति रही। उनके अनुसार जिस प्रकार “अमृत की बूंद झरे सन्तन की बानी में” उसी प्रकार सन्त जी की वाणी के द्वारा प्रेमामृत की वर्षा होती है।
सृष्टि में चित्त की कमी है और आत्मा में आनंद की कमी है। आनंद आत्मा के अंदर ही है, लेकिन वह बाहर खोजती है। हमें अपने गुरु चरणों में प्रार्थना करनी चाहिए, कि हमारा तार प्रभु से जोड़ दीजिए। आनंद आत्मा में है, उसे प्रकट करना होता है, लेकिन उसकी भी प्रक्रिया है। संसार में पाप, आप और बाप से डरना चाहिए और जो इन तीनों से डरता है, उसे किसी से डरना नहीं पड़ेगा। सन्त जी एक भजन के माध्यम से कहते हैं कि “घर को ही तीर्थ बनाऊँगी, कभी तीर्थ न जाऊँगी”। रामराज्य लाना हो तो राम ही पैदा करने पड़ेंगे, स्वयं दशरथ जी भी रामराज्य नहीं ला पाए थे। अंडे खानेवालों के पेट फूले मिलते हैं पर उनमें ताकत नहीं होती। इन्द्रदेवजी सरस्वती जी एकमात्र हैं सन्त हैं समाज में जो व्यसन और माँसभक्षण के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं। ब्राह्मण सदा भजनानंदी, शीतल स्वभाव का होना चाहिए। व्यसन और मांसाहार पर सदा प्रहार करके समाज में क्रांति लानेवाले संत जी ने आज अपनी क्रांतिकारी वाणी से भारतीय प्राचीन संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए कथा का प्रारंभ किया। साथ ही कहा कि यदि “सारे कथाकार यदि व्यसन पर बोलने लग जाएं तो समस्त भारत व्यसनमुक्त हो जाएगा लेकिन सभी संतों में ऐसा करने की हिम्मत नहीं है।” और आह्वान किया कि संतों को भी यह बीड़ा उठाना होगा, केवल कथा प्रवचन करने से भी कल्याण नहीं होनेवाला। सृष्टि का समस्त ज्ञान जिसे है वे राजा जनक थे। रामायण प्रमाण है कि खोया हुआ चरित्र भी लौटकर आता है और दूसरे के चरित्र का हनन करनेवाले का चरित्र निर्माण भी कभी नहीं होता। ‘राम जी ने अयोध्या में दस हज़ार वर्ष राज किया लेकिन आज समस्त अयोध्या में भी मांसभक्षण होता है, खुले में शराब भी पी जाती है और नाम है अयोध्या धाम’, इस बात पर संत जी ने अत्यंत दुख प्रकट किया।
पहले लोग जब तीर्थाटन करके आते थे तब अपने शहर की परिक्रमा लगाते थे, लेकिन अब गांव और शहर के परिक्रमा मार्ग की जमीन पर भी अब सरपंच का हड़कंप हो गया है।
वहीं गायों के लिए गौचर धरती हेतु भी संत जी ने ऊंचे स्वर में आवाज़ उठाई। आजकल बेटी को भी संध्याकाल में बिदाई देते हैं जबकि प्राचीन काल में भोर में ध्रुव तारे के दर्शन करके बेटी को विदा किया जाता था, अधिक से अधिक शादियां टूटने का इसे एक कारण बताया। जिसने ससुराल को सह लिया वह बहु पूजी जाती है। चाहे बेटी कुंवारी रह जाए लेकिन उसे मांसाहारी, शराबी और नशेड़ी लड़के को न देना, इसके बजाय बेटी घर में साधना और भजन करे। जब तक व्यक्ति का व्यक्तित्व नहीं बड़ा हो जाता, उसके धन और पढ़ाई कुछ काम के नहीं हैं।
यदि महर्षि दयानंद न होते तो किसी को जनेऊ डालने न मिलता, यज्ञ करने न मिलता।
कथाकारों को कोई पड़ी नहीं की किसी का उद्धार हो। अन्य कथाकारों को व्यासपीठ पर कुछ न कुछ खाना पड़ता है लेकिन संत जी उन्हें विज्ञान बताते हुए कहते हैं कि “हाथ की हथलेटी और पैर के तलवे गुलाबी हों तो कभी गला नहीं बैठता।” मनुष्य के शरीर में आठ हज़ार प्रकार के जंतु रहते हैं। जप, तप, संयम और नियम से कथा सुननी चाहिए। बताते चलें कि कथा तो सब जगह होती है और कथावाचक भी सभी होते हैं, परन्तु यहाँ संत इन्द्रदेवजी सरस्वती जी महाराज जी के श्रीचरणों में बैठकर समस्त भक्तवृंद दर्शन और गुरु-दीक्षा प्राप्त करते हैं, जीवन से त्रस्त और परेशान लोग अपने जीवन की समस्त भौतिक, आध्यात्मिक, मानसिक समस्याओं का समाधान पाते हैं | उक्त कथा का प्रतिदिन दोपहर में 1 से 4 बजे तक संस्कार चैनल पर लाइव परासरण हो रहा है | ज्ञात हो कि 10 अप्रैल को आयोजित श्री राम कृपा महायज्ञ में सभी अपनी निश्चित दक्षिणा प्रदान कर सम्मिलित हो सकते हैं।

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