अयोध्या। सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी को याद करते हुए अयोध्या के समाजसेवी सरदार कवलजीत सिंह कहते हैं कि गुरु अर्जुन देव का पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित रहा है। वे दया और करुणा के सागर थे। वे समाज के हर समुदाय और वर्ग को समान भाव से देखते थे। उन्होंने कहा कि वर्ष 1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवे गुरु बने। उन्होंने ही अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहते हैं इस गुरुद्वारे का नक्शा स्वयं अर्जुन देव जी ने ही बनाया था। सरदार कवलजीत सिंह ने कहा कि गुरु अर्जुन देव सिख धर्म के पहले शहीद थे और मुगल सम्राट जहांगीर के आदेश पर उन्हें फांसी दी गई थी। मुगल उत्तर भारत में उसके बढ़ते प्रभाव और सिख धर्म के प्रसार से डरते थे। उन्होंने सिख ग्रंथ आदि ग्रंथ का पहला संस्करण संकलित किया था। जिसे अब गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा कि अकबर की मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर बादशाह बना। जहांगीर को गुरु जी की बढ़ती लोकप्रियता को पसंद नहीं करता था। जहांगीर ने लाहौर जो की अब पाकिस्तान में है, अत्यंत यातना देकर उनकी हत्या करवा दी। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया। उन्हें शहीद करने का डर दिखाकर अपनी मर्जी के कार्य करवाने की कोशिश की लेकिन गुरु जी ने झूठ का साथ देने से साफ इनकार कर दिया और शहादत को चुना। गुरु अर्जुन देव जी ने धर्म के लिए अपने प्राणों तक की आहुति दे दी।
