चलते-फिरते तीर्थंकर होते हैं संत महात्मा: डा राघवाचार्य 

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August 20, 2022

श्रीमद् वाल्मीकीय कथा में जगद्गुरू डा श्री राघवाचार्य ने अहिल्या उद्धार जनकपुर दर्शन, धनुष भंग व सीता राम विवाह का किया वर्णन 

अयोध्या। रामलला सदन देवस्थान में श्रीमद् वाल्मीकीय कथा की रसधार बह रही है। कथा के सप्तम दिवस व्यासपीठ से जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी डा राघवाचार्य महाराज ने अहिल्या उद्धार जनकपुर दर्शन, धनुष भंग,  सीता राम विवाह का वर्णन किया। अद्भुत व दिव्य कथा सुनकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो रहे हैं। सीता राम विवाह को लेकर पूरे कथा परिसर को रंग-बिरंगे गुब्बारों और फूलों से सजाया गया था। पूरा रामलला सदन देवस्थान मंदिर जनकपुर बना हुआ था। जगद्गुरू जी ने कहा कि संत-महात्माओं का आगमन सदैव मंगलकारी होता है, संतों से कभी कार्य की हानि नहीं होती, अपितु उनसे कार्य की सिद्धि होती है। उन्होंने कहा कि संतों के चरणों में समस्त तीर्थों का निवास होता है, क्योंकि संत के चरण तीर्थों में घूमते-रहते हैं, वो सभी जगह जाते हैं, इसलिए जब कभी भी संत आएं तो उनके चरणों को धो लेना चाहिए, क्योंकि उनके चरणों में सारे तीर्थों का स्पर्श पहले से ही विद्यमान रहता है। इसीलिए संतों को तीर्थंकर कहा जाता है। रामानुजाचार्य जी ने कहा कि तीर्थ तभी तीर्थ बनता है जब वहां संतों के चरण पड़ जाते हैं, अगर तीर्थों में संत ना जाएं, केवल सामान्य लोग ही जाएं तो वो तीर्थ, तीर्थ नहीं होता। भागवत में गंगाजी की महिमा का वर्णन है, जिसमें गंगाजी कहती हैं मेरे अंदर बडे़-बड़े संत महात्माओं के डुबकी लगाने से लाखों लोगों को पवित्र करने का सामर्थ्य पैदा हो जाता है। इसीलिए आज भी कुंभ में संत-महात्माओं पहले शाही स्नान इसलिए करते हैं, ताकि संतो के नहाने से उस गंगा में लाखों लोगों को पवित्र करने का सामर्थ्य पैदा हो जाए। ये भागवत शास्त्र में लिखा प्रमाण है। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में वर्णित है कि जिसके घर के दरवाजे पर संतों के चरण नहीं धोये जाते हों और संतों के चरण के धोने से वहां की जमीन ना भीगती हो, द्वार पर संतों का चरण प्रक्षालन नहीं होता है वो घर शमशान के समान है। संत महात्मा और विद्वान पुरूषों का सबसे बड़ा सम्मान विनम्रतापूर्व क उनको प्रमाण करना ही उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान है। प्रमाण से बड़ा कोई सम्मान नहीं होता। लेकिन वो प्रणाम बनावटी नहीं यथार्थ हो। नमस्कार पद की न्याय शास्त्र में व्याख्या है कि जिसको हम प्रणाम कर रहे हैं उसके सामने मेरा अपकर्ष और जिसको प्रणाम कर रहे हैं उसका उत्कर्ष। हमारी गतिविधि, क्रिया के द्वारा परिलक्षित हो। उसका नाम नमस्कार है। ये नमस्कार प्रणाम ये अंजली मुद्रा इतनी अद्भुत मुद्रा है, जिसके लिए शास्त्रो में कहा गया है कि ये मुद्रा ऐसी विलक्षण मुद्रा है कि एक क्षण मे देवता को प्रसन्न कर देती है, लेकिन वो सच्चे मन से हो।कथा से पूर्व व्यासपीठ का पूजन यजमान ने किया।इस मौके पर विनोद कुमार मिश्र, मनोज कुमार तिवारी,राघवेंद्र मिश्र अप्पू, दया शंकर शुक्ल, रमेश मिश्र शिब्बू सहित बड़ी संख्या में संत साधक मौजूद रहें।

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