कनक महल जानकी घाट में विद्यावाचस्पति यज्ञपीठाधीश्वर संत इंद्रदेव सरस्वती जी महाराज के श्री मुखारविंद रामकथा अमृत वर्षा हो रही
6 अप्रैल को शाम 6 बजे अयोध्या के सभी संत धर्माचार्यों का होगा विशाल सन्त सम्मेलन एवं साधु-भोज
अयोध्या। कनक महल जानकी घाट में वृंदावन से पधारे विद्यावाचस्पति यज्ञपीठाधीश्वर संत इंद्रदेव सरस्वती जी महाराज के श्री मुखारविंद से निसृत श्री राम कथा में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। कथा के आज तीसरे सत्र में यज्ञपीठाधीश्वर संत इंद्रदेव सरस्वती जी महाराज ने कहा कि शाश्वत आत्मा में समाई हुई है, कुछ लोग उसे आत्मज्ञान कहते हैं। शरीर में व्याप्त आत्मा अमृत है अर्थात वह कभी मृत नहीं होती। तीर्थ में घूमने से पाप का भार कम होता है, शरीर में पाप अर्थात् ही नकारात्मकता नष्ट होगा तो सकारात्मकता अर्थात् ही श्रद्धा बढ़ने लगती है। उन्होंने कहा कि निरन्तर राम का नाम रटने से कोई पाप कर्म हमारे हाथों नहीं होगा। हमें राम जी को सर्वत्र समान समझना चाहिए, जहाँ कम समझ लिया वहां हम पाप में डूबते हैं। संत इंद्रदेव सरस्वती जी ने कहा कि काव्य की गणना को कांड कहते हैं। जीवन जीने के लिए गणित की नहीं अनुभव की आवश्यकता है। यदि आपका विश्वास गुरुदेव पर है तो गुरु की दी हुई गाली या अपशब्द भी आपके लिए वरदान बन जाता है। प्रमाद काल दोपहर के 1 बजे से 4 बजे के बीच आपके प्रतिकूल होता है, उसको जिसने साध लिया, इस समय में जिसने अपने आसन को साध लिया, अपनी निद्रा पर जीत हासिल कर ली, वह जीत जाता है। साधुओं को श्वान निद्रा में सोना चाहिए। दिन भर यदि भजन न हो सके तो सोने से पूर्व भजन कर लेना चाहिए। घर में जो मधुर भोजन बनता है उसे यज्ञ की आहुति बनाकर आहूत करें। जिन जिन चीजों से प्राणों को सहायता मिलती है वह भगवान ही है। बाहर का क्लेश कभी घर में नहीं लाना चाहिए, ऐसा हम शंकर भगवान से सीखना चाहिए। गाय का दूध पीए जो, दोनों समय अग्निहोत्र यज्ञ करने वाला, त्रिकाल संध्या करने वाला ब्राह्मण यदि हमारे लिए रामायण पाठ करता है तब हमारे वारे न्यारे हो जाते हैं।आगे सन्त जी बताते हैं कि प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित महायज्ञ में श्री रुद्र भगवान को अपमानित करने पर रूष्ट हुए रुद्र भगवान को शांत करने के लिए भगवान श्री नारायण ने शिवलीलामृत का पाठ किया था।ज्ञात हो कि इसी कथा के उपरांत 6 अप्रैल को संध्याकाल 6 बजे अयोध्या जी के समस्त साधु-संतों का सन्त सम्मेलन एवं साधु-भोज का आयोजन है, अतः सन्त श्री का आह्वान है कि अधिक से अधिक इस अवसर का लाभ लेवें।साथ ही श्री राम कृपा महायज्ञ का आयोजन तारीख 10 अप्रैल को श्री रामनवमी के अवसर पर किया गया है।