रामलला सदन देवस्थान में जगद्गुरु रामानुजाचार्य डा राघवाचार्य महाराज के श्री मुखारविंद रामकथा अमृत वर्षा हो रही
अयोध्या। रामलला सदन देवस्थान में जगद्गुरु रामानुजाचार्य डा राघवाचार्य महाराज के श्री मुखारविंद से निसृत श्री राम कथा में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। डा राघवाचार्य ने कहा कि शाश्वत आत्मा में समाई हुई है, कुछ लोग उसे आत्मज्ञान कहते हैं। शरीर में व्याप्त आत्मा अमृत है अर्थात वह कभी मृत नहीं होती। तीर्थ में घूमने से पाप का भार कम होता है, शरीर में पाप अर्थात् ही नकारात्मकता नष्ट होगा तो सकारात्मकता अर्थात् ही श्रद्धा बढ़ने लगती है। उन्होंने कहा कि निरन्तर राम का नाम रटने से कोई पाप कर्म हमारे हाथों नहीं होगा। हमें राम जी को सर्वत्र समान समझना चाहिए, जहाँ कम समझ लिया वहां हम पाप में डूबते हैं। जगद्गुरु डा राघवाचार्य ने कहा कि काव्य की गणना को कांड कहते हैं। जीवन जीने के लिए गणित की नहीं अनुभव की आवश्यकता है। यदि आपका विश्वास गुरुदेव पर है तो गुरु की दी हुई गाली या अपशब्द भी आपके लिए वरदान बन जाता है। रामानुजाचार्य जी ने कहा कि बाहर का क्लेश कभी घर में नहीं लाना चाहिए, ऐसा हम शंकर भगवान से सीखना चाहिए। गाय का दूध पीए जो, दोनों समय अग्निहोत्र यज्ञ करने वाला, त्रिकाल संध्या करने वाला ब्राह्मण यदि हमारे लिए रामायण पाठ करता है तब हमारे वारे न्यारे हो जाते हैं।आगे सन्त जी बताते हैं कि प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित महायज्ञ में श्री रुद्र भगवान को अपमानित करने पर रूष्ट हुए रुद्र भगवान को शांत करने के लिए भगवान श्री नारायण ने शिवलीलामृत का पाठ किया था।कथा से पूर्व व्यासपीठ का पूजन यजमान राम श्रृंगार पाण्डेय व उर्मिला पाण्डेय ने किया। कथा में राघवेंद्र मिश्रा अप्पू,मनोज जी, अवधेश शास्त्री सहित बड़ी संख्या में संत साधक मौजूद रहें।