नीति से गिरा हुआ समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता: रामानुजाचार्य

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July 5, 2022

द्वारिकाधीश मंदिर में श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण कथा का उल्लास अपने चरम पर

अयोध्या। जहाँ आस्था है, वहीं रास्ता है। आस्था, आत्म-विश्वास और कड़ी मेहनत से आप अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं। अपने नेक उद्देश्यों के प्रति दृढ़ रहें। उक्त बातें द्वारिकाधीश मंदिर,राजघाट में आयोजित श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के पंचम दिवस पर जगद्गुरू रत्नेशप्रपन्नाचार्य जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का पतन तेजी से हो रहा है। लोगों में ईश्वर के प्रति आस्था का अभाव बढ़ता जा रहा है। यही नहीं, मनुष्य-मनुष्य के बीच अविश्वास की दीवारें खड़ी हो रही है। इस समस्या के कुछ महत्वपूर्ण कारणों में से पहला कारण तो यही कि लोगों में चरित्रहीनता बढ़ी है। दूसरा नैतिकता घटी है। तीसरा कारण यह है कि लोगों का ईश्वर के प्रति विश्वास घटा है। संस्कारों के अभाव में नैतिकता का स्तर गिरना स्वाभाविक है। आचार्य जी ने कहा कि नीति से गिरा हुआ समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता। आज के दिखावे के युग में आयोजन तो बहुत हो रहे हैं, किंतु उनके मानवीय सरोकार नहीं हैं। इसीलिए इन आयोजनों से कोई सामूहिक हित नहीं होता। अध्यात्म के बिना भौतिक उत्थान का कोई महत्व नहीं है। मन की पवित्रता के बिना तन की पवित्रता संभव नहीं है। हृदय के पवित्र भाव ही वाच् रूप में भक्ति, सरलता और आचरण के रूप में प्रकट होते हैं, किंतु इस आचरण के अभाव में सर्वत्र अराजकता दिखाई देती है। जगद्गुरू जी कहते है कि जीवन से सुख-शांति और सरलता मानो विदा हो चुकी है। ऐसे में परमात्मा का आधार ही सुख व आनंद प्राप्ति का कारण है।जगद्गुरू रत्नेशप्रपन्नाचार्य जी महाराज 

संसार के विवाह और श्रीराम के मंगलमय विवाह में अंतर बताते हुए कहते है कि यह जो भगवद्-रस है, वह व्यक्ति को बाहर से भीतर की ओर ले जाता है। और बाहर से भीतर जाना जीवन में परम आवश्यक है।

व्यवहार में भी आप देखते हैं, अनुभव करते हैं कि जब तीव्र गर्मी पड़ने लगे, धूप हो तो आप क्या करते हैं? बाहर से भीतर चले जाते हैं। वर्षा में भी आप बाहर से भीतर चले जाते हैं, अर्थात बाहर चाहे वर्षा या धूप हो, घर में तो आप सुरक्षित हैं।उन्होंने कहा कि इसी प्रकार जीवन में भी कभी वासना के बादल बरसने लगते हैं, क्रोध की धूप व्यक्ति को संतप्त करने लगती है, मनोनुकूल घटनाएं नहीं घटती हैं, ऐसे समय में अगर हम अंतर्जगत में, भाव राज्य में प्रविष्ठ हो सकें तो एक दिव्य शीतलता, प्रेम और आनंद की अनुभूति होगी। कथा के दौरान बड़ी संख्या में कथा प्रेमी मौजूद रहें।

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