परेशानियों के जबड़े से कामयाबी छीन कर बने आईएएस अफसर,लड़ी अपनी बदकिस्मती से जंग…

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December 13, 2021

आईएएस किंजल सिंह व आईपीएस सूरज कुमार राय

एक माता-पिता ही अपने बच्चे के सुनहरे भविष्य के लिए रास्ता तैयार करते हैं। जब तक बच्चा समझदार नहीं हो जाता तब तक माता पिता ही उसे समझाते हैं कि आगे कैसे बढ़ना है लेकिन जिनके सिर से माता पिता का साया उठ गया हो उनका जीवन भला कैसा होता होगा। ऐसे कई अनाथ बच्चे बेबस नजरों से अपने भविष्य को अंधकार की तरफ बढ़ते देखते रहते हैं। किन्तु, ऐसे ही बच्चों में से कुछ ने ज़िंदगी की कठिनाइयों के आगे घुटने नहीं टेके और माता पिता का साया सिर पर से उठ जाने के बावजूद भी अपना रास्ता खुद बनाया और कामयाबी हासिल की। तो चलिए आज ऐसे ही कुछ अनाथ बच्चों के बारे में जानते हैं, जिन्होंने अनाथ होने के बावजूद अपनी किस्मत खुद लिखी…

1. मोहम्मद अली शिहाब (आईएएस)

केरल के मलप्पुरम जिले के एक गांव, एडवान्नाप्पारा में जन्मे मोहम्मद अली शिहाब के पिता का साया 1991 में उनके सिर से उठ गया। गरीबी के कारण अपने बच्चों का पेट भरने में सक्षम न होने पर शिहाब की मां ने उन्हें अनाथालय में डाल दिया। अनाथालय से ही शिहाब को वो रास्ता भी मिला जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी। शिहाब इस अनाथालय में 10 सालों तक रहे। यहीं रहते हुए उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई की। यहां रहते हुए उन्होंने जो अनुशासन सीखा उससे इन्हें अपना जीवन व्यवस्थित करने में बहुत मदद मिली। शिहाब ने यहां रहते हुए खुद को इस काबिल बना लिया कि यूपीएससी क्लियर करने के अलावा इन्होंने विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा आयोजित 21 परीक्षाओं को पास भी किया.।
इस दौरान उन्होंने वन विभाग, जेल वार्डन और रेलवे टिकट परीक्षक आदि के पदों के लिए परीक्षाएं दी थीं। शिहाब ने 2011 के में अपने तीसरे प्रयास में यूपीएससी परीक्षा क्लियर कर ली। यहां उन्हें ऑल इंडिया 226वां रैंक प्राप्त हुआ। इंग्लिश में इतने अच्छे ना होने के कारण शिहाब को इंटरव्यू के दौरान ट्रांसलेटर की ज़रूरत पड़ी थी, जिसके बाद उन्होंने 300 में से 201अंक हासिल किए। इसके बाद शिहाब नागालैंड के कोहिमा में पदस्थ हुए।


2. अब्दुल नसर (आईएएस)

अब्दुल नसर कोई बहुत ज्यादा जाना पहचाना नाम नहीं है लेकिन इनके जीवन के संघर्ष और सफलता से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। अपने छह भाई बहनों में सबसे छोटे अब्दुल जब पांच साल के थे तो उनके पिता की मौत हो गई। गरीबी के कारण उनकी मां ने उन्हें अनाथालय में छोड़ दिया।
कुछ साल बाद मां की भी मौत हो गई। अब्दुल अनाथ तो थे लेकिन ये दुख उनके हौसले को तोड़ ना पाया और वो पढ़ाई करते रहे। उन्होंने अनाथालय से ही पढ़ते हुए अपना संघर्ष जारी रखा और 2006 में यूपीएससी की परीक्षा पास कर डिप्टी कलेक्टर बने। 2017 में वह कोल्लम जिले के कलैक्टर बन गए।


3. आईएएस मिश्रा

ह्यूमन्स ऑफ मुंबई की एक पोस्ट में आईएएस मिश्रा ने अपने जीवन के संघर्ष के बारे में बताते हुए कहा था कि केवल पांच की उम्र में वो अनाथ हो गए थे। इसके बाद वह अपने रिश्तेदारों के रहमों पर पाले बढ़े। वह पढ़ने लिखने में भी इतने होशियार नहीं थे।काफी संघर्ष के बाद मिस्टर मिश्रा ने ने अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी की। उनके पास उतने पैसे नहीं थे कि आगे की पढ़ाई कर सकें। उनके रिश्तेदारों ने भी आगे पढ़ने में उनकी मदद नहीं की। इसके बाद वह इलाहाबाद गए क्योंकि वहां उन्हें छत्रवृति मिल रही थी। यहां दाखिला पाने के लिए उन्होंने कई रातें यूनिवर्सिटी के फर्श पर सो कर गुजारीं।
अंत में उन्हें स्कॉलरशिप मिल गया और उनकी ज़िंदगी बदल गई। अपने इस संघर्ष के बदले मिश्रा ने खूब मेहनत की और यूनिवर्सिटी में अव्वल रहे। उन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिली। यहां से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया। उनका अगला लक्ष्य आईएएस बना था और उन्होंने मात्र 23 साल की उम्र में ये लक्ष्य पा लिया।

4. किंजल सिंह (आईएएस)

आज कई क्षेत्रों में महिलाओं के पैर इस तरह से परंपराओं की बेड़ियों से बांध दिए गए हैं कि वह केवल अपने पति पर ही आश्रित होती हैं। ऐसे में यदि पति की मौत हो जाए तो बच्चे एक तरह से अनाथ ही हो जाते हैं।
5 जनवरी 1982 को यूपी के बलिया में पैदा हुईं किंजल सिंह भी 5 साल की उम्र में तब अनाथ हो गईं जब उनके पिता केपी सिंह की हत्या कर दी गई। पिता की मौत के 6 महीने बाद किंजल की मां ने एक और बेटी को जन्म दिया। मां ने जैसे तैसे अपनी बेटियों को पालना शुरू किया। वह अपनी बेटी किंजल और प्रांजल को गोद में लेकर बलिया से CBI कोर्ट दिल्ली का सफर तय करती थी।
उन्होंने पहले ही सोच लिया था कि वह अपनी दोनो बेटियों को आइएएस अफसर बनाएंगी। 2004 में उनकी मां भी इस दुनिया को छोड़ कर चली गईं। ऐसे में छोटी बहन प्रांजल की जिम्मेदारी भी किंजल के कन्धों पर आ पड़ी थी। साल 2008 में दूसरे प्रयास में किंजल ने अपनी मां का सपना पूरा किया और IAS के लिए सिलेक्ट हुईं।
5 जून, 2013 को इस बेटी ने अपने पिता डीएसपी केपी सिंह की हत्या में शामिल 18 दोषियों को सजा दिलाई।


5. सूरज कुमार राय (आईपीएस)

उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले सूरज कुमार राय इंजीनियर बनना चाहते थे। 12वीं की पढ़ाई साइंस से पूरी करने के बाद सूरज इलाहाबाद से पढ़ाई करने लगे। सब कुछ सही चल रहा था लेकिन तभी उन्हें खबर मिली कि उनके पिता की हत्या कर दी गई है। उनके पिता की हत्या के मामले में उन्हें न्याय भी नहीं मिला।
वो जब थाने जाते तो उन्हें घंटों इंतजार करवाया जाता। न्याय के लिए कोर्ट और थाने के चक्कर काटते हुए सूरज इस सिस्टम की लाचारी को बहुत अच्छे से समझ चुके थे। वो हमेशा से इंजीनियर बनना ताहते थे, लेकिन कानून और न्याय व्यवस्था की ढिलाई देख कर सूरज ने फैसला किया कि वह इंजीनियरिंग में अपना करियर बनाने की बजाय ग्रेजुएशन के बाद यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करेंगे तथा आईपीएस ऑफिसर बन कर उन पीड़ितों की मदद करेंगे जिन्हें उनकी तरह न्याय नहीं मिल पाता.
ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद सूरज यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली आ गए। यहां उन्होंने पढ़ाई में अपनी सारी मेहनत झोंक दी। दिन रात पढ़ते हुए उनका एक ही लक्ष्य था और वो था यूपीएससी क्लियर करना। भले ही मेहनत कितनी भी हो लेकिन यूपीएससी की परीक्षा को पास करना इतना आसान कहां होता है।
यही कारण रहा कि सूरज अपने पहले प्रयास में प्री भी क्लियर नहीं कर पाए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। तीसरे प्रयास में उन्हें बेहतर की उम्मीद थी और 2017 ही वो साल था जब सूरज की मेहनत रंग लाई और वह यूपीएससी परीक्षा में ऑल इंडिया 117 रैंक के साथ पास हो गए।

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