दंतधावन कुंड मंदिर के पौराणिक से हो रहा खेल, गद्दी की परम्परा मर्यादा हो रही तार तार


देवोत्तर संपत्ति का विक्रय करते हुए करोड़ों की संपत्ति कर दी नष्ट भ्रष्ट
मंदिर की सम्पत्ति का नही होने दिया जायेगा दोहन : अंकुराचारी
अयोध्या। अयोध्याधाम में मंदिरों के संपत्ति विवाद का प्रकरण आए दिन आता रहता है। यहां बहुत कम ही ऐसे मंदिर होंगे, जिनका विवाद कोर्ट कचहरी में नहीं चल रहा होगा। शुक्रवार को पौराणिक पीठ दंतधावन कुंड का मामला सामने आया। इसको लेकर आचारी सगरा, कुशमाहा निवासी अनुभव पांडेय उर्फ अंकुराचारी ने महंत माधव दास पूर्व प्रधानमंत्री निर्वाणी अनी अखाड़ा इमली बगिया हनुमानगढ़ी में प्रेसवार्ता के दौरान बताया कि दंतधावन कुंड मंदिर अयोध्या का अत्याधिक प्राचीन मंदिर है। जो कि विरक्त परंपरा की गद्दी है। स्व. जय कृष्णाचारी दंतधावन कुंड के महंत एवं सरवराहकार थे। जो स्वयं विरक्त व बाल ब्रह्मचारी के तौर पर गद्दीनसीन थे। उनकी मृत्यु सन 1959 में हुई। लेकिन मृत्यु से पूर्व उन्होंने दो वसीयतनामा लिखा था। पहली वसीयत 19 जनवरी 1959 को लिखा, जिसमें नाबालिक नारायणाचारी को निहंग, विरक्त , बालब्रह्मचारी, सर्वरहकार एवम अनंताचारी को वली नामित किया। जिसे 27 जून 1959 की वसीयत से निरस्त किया और अपनी समस्त जायदाद ठाकुर जी को समर्पित कर दिया एवं अपने बाद के लिए निहंग, विरक्त बाल ब्रह्मचारी सरवराहकार नारायणाचारी को चेला बनाकर। नाबालिग होने के कारण एक वली सुदर्शन दास आचारी को नामजद कर ट्रस्ट का गठन, मंदिर एवं समस्त संपत्ति की देखरेख के लिए कर दिया, जिसमें सार्वजनिक देवोत्तर संपत्ति मंदिर के ट्रस्टीयान को हक दिया कि यदि वली या सरवराहकार में किसी प्रकार की बुराई या बदचलनी पाई जाए तो उसे हटा दें एवं स्थान खानदान से अन्य योग्य विरक्त को गद्दी पर बैठा दे। उन्होंने बताया कि डीड के विपरीत महंथ व सरवराहकार नारायणाचारी ने गृहस्थ जीवन जिया। अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए भगवान की संपत्ति में अनगिनत बैनामे किए, जिसका अधिकार उनको को नहीं था। आगे चलकर ट्रस्ट के अस्तित्व को समाप्त कर दिया। देवोत्तर संपत्ति का विक्रय करते हुए ठाकुरजी के करोड़ों की संपत्ति नष्ट भ्रष्ट कर दी। 14 अगस्त 1986 को एक वसीयत विवेकाचारी को सरवराहकारी एवम वली अनुरागाचारी पुत्र रामचंद्राचारी का तथ्य गोपन करके तहरीर कर रजिस्ट्री करा दिया। जो कि पीठ का अपमान करने का प्रयास मात्र है। महंत नारायणाचारी ने अपने तीन बेटों में से सबसे छोटे बेटे विवेक को सरवराहकार लिखा एवं अपने सबसे बड़े बेटे कौस्तुभ को अपने ही बड़े भाई रामचंद्र आचारी का बेटा लिखते हुए वली बना दिया। जो न तो रामचंद्र आचारी का बेटा रहा। न ही वसीयत के समय बालिग था। 1994 से मंदिर की संपत्ति का मुकदमा चल रहा है, जिसका वर्तमान समय में स्थगन आदेश है। क्योंकि ठाकुर जी के संपत्ति के अधिकारी लाखों शिष्य हैं। इसलिए डीड के अनुसार ट्रस्ट को पुनर्जीवित करके खानदान से विरक्त वारिस को मंदिर का महंत बनाया जाए। इससे ठाकुर जी की संपत्ति की रक्षा हो सके। सार्वजनिक कार्य के लिए इस्तेमाल हो सके। जो सनातन धर्म की मर्यादा के अनुरूप हो। उन्होंने कहा कि दंतधावन कुंड मंदिर की सम्पत्ति ट्रस्ट और सवा लाख जुड़े शिष्यों की सम्पत्ति है। इसका दोहन नही होने दिया जायेगा। इसके लिए मैं लगातार आवाज उठा रहा हूं।
लगाए जा रहे सभी आरोप फर्जी : विवेक आचारी
-दंतधावन कुंड आचारी मंदिर के वर्तमान पीठाधीश्वर महंत विवेक आचारी ने कहा कि मंदिर के नाम कोई ट्रस्ट नही है। मंदिर के नाम 27 मौजा है। यानि कुल मिलाकर 22 हजार एकड़ जमीन थी। अगर किसी प्रकार का ट्रस्ट होता। तो वे जमीनें सीलिंग में न जाती। जो चली गई हैं यह स्थान गृहस्थ परंपरा का स्थान है। जो रामानुज सम्प्रदाय के श्री परंपरा से संबंधित है। यह उत्तर भारत की प्रधानतम पीठ है। हम रामानुज संप्रदाय के बड़गल से हैं। मैं आचारी मंदिर में 13वीं पीढ़ी का महंत हूं। हम लोग भगवान लक्ष्मी नारायण के उपासक हैं। पूरे देश में मठ से जुड़े हुए ढ़ाई लाख परिवार है। जो समय-समय पर उत्सव में सम्मिलित होते हैं। उन्होंने कहा कि जितने भी आरोप लगाए जा रहे हैं। वह सब फर्जी व मनगढंत हैं। सारा प्रोपेगेंडा मंदिर और मंदिर की जमीन कब्जियाने के उद्देश्य से रचा जा रहा है। सब कुछ बर्दाश्त है। लेकिन अगर ठाकुरजी के प्रति कोई गलत करेगा। तो उसे कत्तई बर्दाश्त नही किया जायेगा। जो लोग हमारे ऊपर आरोप लगा रहे हैं। उनके ऊपर खुद कई गंभीर केस चल रहे हैं। जल्द ही इनके खिलाफ कार्रवाई करवायी जायेगी।