अयोध्या। भगवान के दिव्य गुणानुवादों के श्रवण, मनन और चिंतन से जीवन में शुभता, श्रेष्ठता और दिव्यता का आरोहण होता है। अतः इहलौकिक एवं पारलौकिक अनुकूलताओं के लिए भगवान का स्मरण प्रतिपल करते रहें। उक्त बातें जगद्गुरू रत्नेशप्रपन्नाचार्य जी महाराज ने द्वारिकाधीश मंदिर,राजघाट में चल रहे श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण कथा के तृतीय दिवस में कही।रत्नेशप्रपन्नाचार्य ने कहा कि मनुष्य को हमेशा भगवान का चिंतन करना चाहिए। भगवान का चिंतन करने से धीरे-धीरे उनके गुण हममें आने लगते हैं। यदि मनुष्य वास्तविक शांति चाहता है, तो उसके चिंता को घटाकर चिंतन को बढ़ाना होगा। चिंता और चिता में कोई अंतर नहीं हैं। चिंता मनुष्य को जिंदा जलाती है और चिता मरे हुए को। जीव चिंता छोड़कर भगवान का चिंतन करे। चिंतन, भजन और मनन करने से काम, क्रोध, लोभ और मोह से मुक्ति मिलती है।उन्होंने कहा कि तब ही प्रभु की भक्ति में मन लगता है। मन की व्यथा भुलाकर प्रभु की कथा में मानव मन लगाए तो उसके दु:ख दूर होते हैं। परमात्मा का कोई आदि है न कोई अंत, वे तो निराकार स्वरूप हैं। भक्त उनका जिस रूप में स्मरण करता है वे उसे उसी रूप में दर्शन देते हैं। आत्मा-परमात्मा का सीधा संबंध है। जब तक मनुष्य अपनी आत्मा के विकार और मन को शुद्ध नहीं करता है, उसे परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। जगद्गुरु जी ने कहा कि ईश्वर के गुणों का ज्ञान प्राप्त करने का प्राचीन उपाय तो वेद व उपनिषद आदि ग्रन्थ ही हैं। वेद व वेदभाष्य का अध्ययन कर के अनन्त गुणों वाले ईश्वर के अनेकानेक गुणों का ज्ञान प्राप्त होता है। ईश्वर के स्वरूप पर दृष्टि डालें तो ज्ञान हो जाता है।कथा के अंत में धूमधाम से श्रीराम जन्मोत्सव मनाया गया। इस मौके पर जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी सूर्य नारायणाचार्य जी,स्वामी शशिधराचार्य जी,स्वामी अनिरुद्धाचार्य करतलिया बाबा सहित बड़ी संख्या में संत साधक मौजूद रहें।