बुधवार को होगी मानस गोष्ठी,जुटेंगे अवधपुरी के प्रकांड विद्वतगण व होगा संत सम्मेलन

अयोध्या। चैत्र रामनवमी के पावन अवसर पर कनक महल में विद्यावाचस्पति यज्ञपीठाधीश्वर संत श्री इन्द्रदेवजी सरस्वती महाराज के श्रीमुख से रामकथा की अमृत मयी वर्षा हो रही है। आज चतुर्थ दिवस की कथा में श्री राम जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज की सुपात्र शिष्या डॉ. सुनीता शास्त्री जी, श्री विद्यापीठम् की आज चतुर्थ दिवस की कथा में विशेष उपस्थिति रही।
कल अर्थात् 6 अप्रैल को साधु भोज विशाल अन्न भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही कल कथा के बीच 4 बजे अयोध्या नगरी में मानस गोष्ठी का भव्य आयोजन कथा स्थल में ही कनक महल में आयोजन किया रहा है, जिसमें अवधपुरी के प्रकांड विद्वतगणों का आगमन होगा।अतिथि वक्तव्य के रूप में डॉ. सुनीता जी ने बताया सृष्टि की आदि नगरी अयोध्या है, वह परम् पवित्र नगरी है, जिसकी वंदना महर्षि वाल्मीकि ने, गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी की है “बंदौ अवधपुरी अति पावन
सरजू अति पुनीत अति पावन” कहकर की है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी भी वनवास से लौटने पर सीता मैया को सरयू मैया पर पड़े स्तम्भ दिखाकर नमन करने को कहते हैं। आगे वे संत इन्द्रदेवजी महाराज जी के लिए कहती हैं कि भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने वाले व्यासासन पर विराजमान परम् पूज्य व्यास जी हैं। पश्चात संत इन्द्रदेवजी सरस्वती महाराज जी के अनुसार योगी और मोदी के रास्ते पर सब आ जाएं, चाहे वह किसी भी संस्कृति का हो, यदि वह राम की धारा में आ जाए, तब वह निरन्तर जी लेगा। अभाव में भाव पैदा नहीं हो सकता। सन्त जी ने अपने मनपसंद भजन “जाते हैं रोज लाखों बेकार खानेवाले, कोई अच्छा काम कर ले दुनिया से जानेवाले” से आज की कथा का प्रारंभ किया। मन का देवता चंद्रमा है, नेत्रों के देवता सूर्य हैं। धर्म, संस्कृति, भजन और पूजन के अभाव में मानव के जीवन की शोभा भी कम हो जाती है। लोग धर्म, आनंद, शोभा और प्रसन्नता से भरपूर जीवन जी पाए यही श्री राम प्रभु की कामना थी। यज्ञ में दही निषेध बताया है क्योंकि उसमें जंतु (बैक्टेरिया) हो जाते हैं। संन्यासी भगवान और देवताओं के सन्देश को हम तक पहुंचाते हैं। धरती माता और गौमाता के चयन से श्री राम जी को अयोध्या और मथुरा में श्री कृष्ण का अवतार हुआ था। जिसकी बुद्धि का भ्रम दूर हो जाता है, उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। जीवन में स्वाद डालोगे तो आनंद आएगा, जब तक राम कथा का रस नहीं आ सकता। अयोध्या जी श्री राम का हृदय है। पुण्य करके उस पुण्य का दान कर दीजिए किसी दुखी के लिए, उसका दुख अपने आप दूर हो जाएगा, आप अपने सुख से दान निकालिए, उस दुखी को सुख मिल जाएगा। भगवान राम स्वयं पदम् रूप हैं और तीनों भ्राता लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न उनके आयुध हैं। कैकयी मैया सबसे सुंदरी और बलवान थीं। सात पीढ़ी में राजा दिलीप के पुत्र अज और उनके पुत्र दशरथ हुए, जो अवध्य राजा थे, जिसका अर्थ है उन्होंने कभी किसी का वध नहीं किया था, जिनका युद्ध रावण से भी हो चुका था। शबरी को एक नहीं अनेक जन्मों की भक्ति के बाद प्रभु श्री राम के दर्शन हुए थे। सोने के पात्र में या वटवृक्ष के दोने में जल लेकर फिर उसमें यज्ञ का हविष्य डालना चाहिए, जिसे ग्रहण कर ही श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। भारतीय संस्कृति में यज्ञ की बहुत महिमा है। कभी-कभी पति को भी त्यागपूर्वक रहना चाहिए, उसे अपनी पत्नी को भी कभी-कभी माँ मानकर व्यवहार करना चाहिए। जिस घर में मासिक धर्म का पालन होता है, उसी घर में महापुरुषों का जन्म होता है। हर कथा में यज्ञ होना चाहिए। ज्ञात हो कि 10 अप्रैल को 21 कुंडीय श्री राम कृपा महायज्ञ का आयोजन किया गया है। हनुमान जी जब सीता मैया को खोजने गए तब अग्नि, वायु और फिर फल खाए थे। सोहबत और संग अच्छा होना चाहिए, कुंडली बाद में अच्छी हो जाती है। अयोध्या जी में संत इन्द्रदेवजी सरस्वती जी महाराज द्वारा अब तक के चतुर्थ बार इस कथा के आयोजन और संत जी के दर्शन का लाभ अधिक से अधिक भक्त करें ऐसा आह्वान किया जा रहा है।