श्री राधा मोहन कुंज में भगवान के विराजने के साथ श्रीमद् जगद्गुरु निम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर स्वभु द्वाराचार्य श्री राधामोहन शरण देवाचार्य जी महाराज की होगी महंताई


रामनगरी समेत पूरे भारत से आये संत धर्माचार्य साधुशाही परंपरानुसार देगें कंठी, चद्दर, तिलक
अयोध्या। श्री सर्वेश्वर गीता मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में नवनिर्मित भव्य श्री राधा मोहन कुंज का प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के तृतीय दिवस श्रीमद् जगद्गुरु निम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर स्वभु द्वाराचार्य श्री राधामोहन शरण देवाचार्य जी महाराज ने व्यासपीठ से सृष्टि के वर्णन में बताया कि भगवान ब्रह्मा क्रत सृष्टि का दिव्य वर्णन ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का दृढ़ संकल्प लिया और उनके मन से मरीचि, नेत्रों से अत्रि, मुख से अंगिरा, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगूठे से दक्ष तथा गोद से नारद उत्पन्न हुये। कथाव्यास ने कहा कि ब्रह्मा जी ने आदि देव भगवान की खोज करने के लिए कमल की नाल के छिद्र में प्रवेश कर जल में अंत तक ढूंढा। परंतु भगवान उन्हें कहीं भी नहीं मिले। ब्रह्मा जी ने अपने अधिष्ठान भगवान को खोजने में सौ वर्ष व्यतीत कर दिये। अंत में ब्रह्मा जी ने समाधि ले ली। उन्होंने कहा कि इस समाधि द्वारा उन्होंने अपने अधिष्ठान को अपने अंतःकरण में प्रकाशित होते देखा। शेष जी की शैय्या पर पुरुषोत्तम भगवान अकेले लेटे हुए दिखाई दिये। ब्रह्मा जी ने पुरुषोत्तम भगवान से सृष्टि रचना का आदेश प्राप्त किया और कमल के छिद्र से बाहर निकल कर कमल कोष पर विराजमान हो गये। इसके बाद संसार की रचना पर विचार करने लगे।जगद्गुरू जी ने कहा कि ब्रह्मा जी ने दस प्रकार की सृष्टियों की रचना की महत्तत्व की सृष्टि, भगवान की प्रेरणा से सन्त्वादि गुणों में विषमता होना ही इसका गुण है। अहंकार की सृष्टि,इसमें पृथ्वी आदि पंचभूत एवं ज्ञानेन्द्रयि और कर्मेन्द्रिय की उत्पत्ति होती है। भूतसर्ग की सृष्टि, इसमें पंचमाहा भूतों को उत्पन्न करने वाला तन्मात्र वर्ग रहता है। इन्द्रियों की सृष्टि, यह ज्ञान और क्रियाशील शक्ति से उत्पन्न होती है। उन्होंने कहा कि सात्विक सृष्टि, अहंकार से उत्पन्न हुए इन्द्रियाधिष्ठाता देवताओं की सृष्टि है। मन इसी सृष्टि के अंतर्गत आता है।अविद्या की सृष्टि इसमें तामिस्त्र, अन्धतामिस्त्र, तम, मोह, माहमोह, पांच गांठें हैं। वैकृत की सृष्टि, यह छह प्रकार के स्थावर वृक्षों की है। इनका संचार जड़ से ऊपर की ओर होता है। तिर्यगयोनि की सृष्टि, यह पशु पक्षियों की सृष्टि है। इनकी 28 प्रकार की योनियां मानी गयी हैं। मनुष्यों की सृष्टि, इस सृष्टि में आहार का प्रवाह ऊपर मुंह से नीचे की ओर होता है। देवसर्ग वैकृत की सृष्टि− इनके अतिरिक्त सनत्कुमार आदि ऋषियों का जो कौमार सर्ग है यह प्राकृत वैकृत दोनों है। द्वाराचार्य श्री राधामोहन शरण देवाचार्य जी के कृपापात्र शिष्य महंत सनत कुमार शरण जी ने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का मुख्य उत्सव आज यानि 28 नवंबर सोमवार को समारोह पूर्वक होगा। जिसमें रामनगरी अयोध्या के संत धर्माचार्यों के द्धारा गुरुदेव की महंताई समारोह भी होगा। आये हुए अतिथियों का स्वागत श्री सर्वेश्वर गीता मंदिर ट्रस्ट करेगा। आज की कथा में तुलसी दास जी की छावनी के महंत जनार्दन दास, डांडिया मंदिर के महंत महामंडलेश्वर गिरीश दास,राम हर्षण कुंज के संत राघव दास,नागा कृष्ण कांत दास सहित बड़ी संख्या में संत साधक मौजूद रहें।