संत,धर्माचार्य का समूह दिवंगत आचार्य को देगे श्रद्धांजलि, स्वामी हर्याचार्य के व्यक्तित्व-कृतित्व पर भी होगी चर्चा
महाराज श्री नारियल सदृश थे, यह जीवन धन्य है जिस पर उनकी कृपा बरसी: रामदिनेशाचार्य
अयोध्या। संतो की सराय कही जाने वाली रामनगरी में अनेक भजनानंदी संत हुए है। ऐसे संत जो अपना संपूर्ण जीवन भगवत भजन में ही समर्पित कर दिया उन संतों में एक के परम पूज्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी हर्याचार्य जी महाराज। हरिधाम गोपाल पीठ स्वामीजी की तपोस्थली आज भी अपने वैभव को समेटे हुए।आध्यात्मिकता को चार चांद लगा रहा है। रामनगरी का आध्यात्मिक जगत जिन आचार्यों से आलोकित है उनमें जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी हर्याचार्य जी महाराज एक है।
विशिष्टताद्वौत के साथ-साथ श्री हनुमत उपासना का अद्भुत संयोग उनके व्यक्तित्व का आभूषण था। उन्होंने जगद्गुरु के रूप में देश में दशकों तक रामानंद संप्रदाय की ध्वजा फहराई। जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी हर्याचार्य को शनिवार को उनकी 14वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाएगा। श्री हरिधाम गोपालपीठ मंदिर स्थित उनकी तपोस्थली पर पुण्यतिथि के आयोजन की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। संत- धर्माचार्य का समूह दिवंगत आचार्य को अपनी श्रद्धांजलि देगें। इस अवसर पर स्वामी हर्याचार्य के व्यक्तित्व-कृतित्व पर भी चर्चा होगी।
सिद्धार्थनगर जिले में मघा नक्षत्र में जन्मे बालक हरिनाथ त्रिपाठी किशोरावस्था में अयोध्याजी आ गये। उन्होंने हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत रामबालक दास जी महाराज के शिष्य के रूप में वेद, वेदांत एवं व्याकरण में विशिष्टता हासिल की। कर्मकांड, ज्योतिष, वाल्मीकि रामायण, गीता व गोस्वामी तुलसीदास के द्वादश ग्रंथों का वे अध्यापन भी शिक्षार्थियों को कराते रहे।उन्होंने अयोध्या के कई संस्कृत विद्यालयों में प्राचार्य पद को सुशोभित किया। भगवान सीताराम जी की आराधना व हनुमान जी की सेवा उनके चिंतन में सदैव रची-बसी रही। स्वामी हर्याचार्य जी को सन् 1989 के प्रयाग कुंभ में जगद्गुरु रामानंदाचार्य के पद पर विभूषित किया गया। महाराज श्री ने हनुमत कवच व ब्रह्मासूत्र, गीता भक्ति दर्शन का 12वां अध्याय, वेदों में अवतार रहस्य, श्री संप्रदाय दर्शन तथा श्रीरामचरित मानस में वैदिकत्व सहित दो दर्जन पुस्तकों की रचना कर हिंदू धर्म-संस्कृति को समृद्ध किया। सन् 2008 में भाद्र शुक्ल सप्तमी उनका साकेतवास हुआ। उनके उत्तराधिकारी रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य जी कहते हैं कि महाराज श्री नारियल सदृश थे। यह जीवन धन्य है जिस पर उनकी कृपा बरसी। महाराज के सिद्धांतों का अनुसरण करते जीवन जाय, यही प्रार्थना श्री हनुमान जी से अनवरत होती रहती है।