त्रेता में भगवान राम ने राजा दशरथ के जिस महल में जन्म लिया था, उस विरासत की नुमाइंदगी आज भी कर रहा चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ जी का राजमहल
बिंदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्रप्रसादाचार्य के सानिध्य में पूरा महल उत्सव के आनंद में लगाता है गोता
यहां चारों महारानियों संग विराजते हैं श्रीराम सहित चारों भैया
अयोध्या। त्रेता में भगवान राम ने राजा दशरथ के जिस महल में जन्म लिया था, उस विरासत की नुमाइंदगी आज भी होती है। यह जिक्र है, चुनिंदा पीठों में शुमार चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ जी के राजमहल बड़ास्थान का। यूं तो इस पीठ की प्राचीनता अनादि है पर सन् 1704 ई. में इसके जीर्णोद्धार का श्रेय पहुंचे हुए पूज्य संत स्वामी रामप्रसादाचार्य को जाता है। उस समय यह स्थान वीरान पड़ा था पर श्रुतियों के आधार पर लोग इस स्थल को दशरथमहल के नाम से जानते थे। स्वामी रामप्रसादाचार्य ने इस स्थल पर धूनी तो रमाई पर निर्माण के नाम पर घास-फूस की कुछ झोपड़ियां ही बनवाईं। उनकी मान्यता थी कि साधु को महल में रहने की जरूरत नहीं है, उसे तो सिर छुपाने के लिए नाम मात्र की छत चाहिए। हालांकि उनके शिष्य एवं दशरथमहल के दूसरे पीठाधिपति स्वामी रघुनाथप्रसादाचार्य ने दशरथमहल को विरासत के अनुरूप आकार देने का प्रयास किया। महल की तरह भगवान धनुर्धारी का भव्य मंदिर बनवाया और करीब 25 बीघा के परिसर में संत निवास, अतिथि गृह, यज्ञशाला, उद्यान आदि का निर्माण कराया। दशरथमहल का स्वरूप बाद के कुछ और पीठाधिपतियों के प्रयास से और भव्य होता गया। वर्तमान पीठाधिपति बिंदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्रप्रसादाचार्य पीठ से पारंपरिक तौर पर जुड़े उन स्थलों की ओर ध्यान दिलाते हैं, जिससे यह साबित होता है कि यह स्थल त्रेता से ही दशरथमहल के रूप में प्रवाहमान है। त्रेता में राजा दशरथ के जिस मखौड़ा धाम पर पुत्रेष्टि यज्ञ का जिक्र मिलता है, वहां रामजानकी मंदिर के रूप में दशरथमहल की संपदा अभी भी पूरी जीवंतता से विद्यमान है। तो महल छोड़कर भरत जिस नंदीग्राम में तपस्या करने गए, वहां भी दशरथमहल से संबद्ध मंदिर विद्यमान है। मान्यता है कि विवाह के बाद मां सीता साथ में अपनी ईष्ट मां महागौरी को लेकर आईं और उन्हें महल के ईशानकोण पर प्रतिष्ठित किया गया, यह स्थान छोटी देवकाली के रूप में जाना जाता है और छोटी देवकाली आज भी दशरथमहल के स्वामित्व में है। देवेंद्रप्रसादाचार्य के अनुसार आज जिस स्थल को रामजन्मभूमि माना जाता है, वह दशरथ जी के महल का प्रसूति घर था और यहीं रानी कौशल्या ने प्रभु राम को जन्म दिया था। मंदिर की उपासना परंपरा से भी दशरथ राजमहल की विरासत प्रगाढ़ होती हैं। यहां भगवान की उपासना बाल एवं तरुण रूप में होती है। सामान्य तौर पर प्रत्येक मंदिर में भगवान को स्नान कराने और पूजन के बाद भोग लगाया जाता है पर यहां विराजमान भगवान को बालक रूप में मानकर जागरण के साथ ही उन्हें मेवा-मिश्री का भोग लगाया जाता है। यहां भगवान का धनुषधारी नामकरण भी दशरथमहल की विरासत को पुख्ता करता है, इस कथानक के साथ कि दशरथमहल से विश्वामित्र जिन राम को लेकर गए थे, वे धनुर्धारी थे।
मान्यता है कि त्रेता के दशरथ महल के सिद्ध संत बाबा श्री रामप्रसादाचार्य जी महाराज ने यहां पुनः मंदिर की स्थापना की और वर्तमान स्वरूप प्रदान किया। यह स्थान श्री वैष्णव परंपरा की प्रसिद्ध पीठ एवं बिंदुगादी की सर्वोच्च पीठ है। इसे बड़ा स्थान या बड़ी जगह भी कहा जाता है। यहां के संस्थापक सिद्ध संत बाबा श्रीरामप्रसादाचार्य जी महाराज करीब 300 वर्ष पूर्व अवतरित हुए थे।
बाबा श्री रामप्रसादाचार्य भक्त रूपा श्रीजानकी के अनन्य भक्त थे। अयोध्या के सीता कुंड क्षेत्र में तपस्या के दौरान एक दिन भूलवश बाबा तिलक लगाना भूल गए। जब वह पूजा में बैठ गए तो उनका अपूर्ण तिलक देखकर भक्त स्वरूपा किशोरी जी ने अपने पैर के अंगूठे से उनका तिलक लगा दिया।
बिंदु मिटने की जगह प्रकाशित होता गया
संतों ने कहा कि यह तिलक बिंदु हमारी परंपरा के अनुरूप नहीं है। अतः आप इसे मिटा दें. बाबा ने कहा कि यह किशोरी जी का प्रसाद है तो वे इसे मिटा नहीं सकते। अगर आप चाहें तो मिटा सकते हैं. बाबा के तिलक को संतों ने मिटाने का प्रयास किया, तभी बिंदु मिटने की बजाय प्रकाशित होता गया। इस चमत्कार को देखकर किशोरी जी की कृपा मानते हुए सभी संतों ने महाराज जी से क्षमा याचना की। इस घटना से बाबा की प्रसिद्धि पूरे भारत के समाज में सिद्ध संत की हो गई। इससे हजारों लाखों की संख्या में भक्त स्थान से जुड़े और पूरे भारत में भक्तों ने यहां से राम मंत्र प्राप्त किया। बिंदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य ने बताया कि दशरथ महल में श्रीराम जन्मोत्सव का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिर में अन्य उत्सव जैसे श्रीजानकी जयंती, सीता राम विवाह, सावन झूला आदि भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। बिंदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य जी महाराज के कृपापात्र शिष्य मंगलभवन पीठाधीश्वर महंत कृपालु रामभूषण दास जी महाराज ने बताया कि अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ जी के राजमहल बड़ा स्थान में आने के बाद भक्तों को परम शांति का अनुभव होता है। यह स्थान मानव ही नहीं, बल्कि देवताओं के लिए भी बहुत ही आनंद देने वाला है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां का मुख्य उत्सव भगवान राम का जन्मोत्सव है। जन्मोत्सव पर मंदिर में विविध कार्यक्रम होता है। आज बिंदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य जी महाराज व बिंदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य जी महाराज के कृपापात्र शिष्य मंगलभवन पीठाधीश्वर महंत कृपालु रामभूषण दास जी महाराज ने हनुमानगढ़ी जाकर हनुमानजी महाराज का दर्शन पूजन किया। इस मौके पर धर्मसम्राट श्रीमहंत ज्ञानदास जी महाराज के कृपापात्र शिष्य संकट मोचन सेना के कार्य वाहक अध्यक्ष पुजारी हेमंत दास ने बिंदुगाद्याचार्य जी व महंत कृपालु रामभूषण दास जी का अभिनन्दन किया।
