भागवत कथा का छठा दिवस मणिराम दास छावनी में
अयोध्या। रामनगरी के मणिराम छावनी के योग एवं प्राकृतिक चिकित्सालय में इन दिनों भागवत कथा की अमृत वर्षा हो रही है। व्यासपीठ से कथा की रसमयी वर्षा प्रख्यात कथावाचक राधेश्याम शास्त्री जी कर रहें है। कथा के छठवें दिवस कथाव्यास ने कहा कि श्रीकृष्ण में भगवत्ता की अभिव्यक्ति बहुत अनूठी है। अभिव्यंजक स्थल के अनूरूप ही अभिव्यक्ति भी होती है। द्वापर युग में अभिव्यंजक स्थल की अनुकूलता के कारण ही ऐसी भगवत्ता की अभिव्यक्ति हो सकी है। श्री कृष्ण हुए तो अतीत में, लेकिन हैं भविष्य के। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ से बाहर हैं। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं। राधेश्याम शास्त्री जी ने कहा कि सबसे बड़ा कारण तो यह है कि कृष्ण अकेले ही ऐसे हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी मुस्कुरा रहे हैं परम प्रसन्न हैं। अनुराग और वैराग्य उनमें दोनों घटित हैं। उन्होंने कहा कि कृष्ण नृत्यमय और संगीत मय हैं। हंसते हुए, गीत गाते हुए। अतीत का सारा धर्म दुखवादी था। कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास, आंसुओं से भरा हुआ था। हंसता हुआ धर्म विमार और उदास था। उन्होंने कहा कि दुखी-चित्त लोगों के लोगों के लिए उदास, उदास लोग आकर्षण का कारण बन जाते हैं। बहुत से लोग गहरे अर्थों में इस जीवन के विरोधी हैं। कोई और जीवन है परलोक में, कोई मोक्ष है, उसके पक्षपाती हैं। लोगों ने दो हिस्से कर रखे हैं जीवन के-एक वह जो स्वीकार योग्य है और एक वह जो इनकार के योग्य है।श्रीकृष्ण समग्र जीवन को आधे अधूरे में नही वल्कि पूर्णता में स्वीकार करते हैं। जीवन की समग्रता की स्वीकृति उनकी लीलाओं में फलित हुई है। इसलिए इस देश ने और सभी अवतारों को आंशिक अवतार कहा है, कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा है। श्री कृष्ण पूर्ण परमात्मा है।