रामकथा के मंच पर श्रीहर्षण सौरभ ग्रंथ का विमोचन द्वाराचार्य स्वामी राजेन्द्र देवाचार्य सहित संतो ने किया




रामानंदाचार्य स्वामी वल्लभाचार्य के सानिध्य में महोत्सव में उमड़ा भक्तो का भारी हुजूम
स्वामी रामहर्षण के शिष्यों से पटी रामनगरी, सिया बाेल की गूंज से गुंजायमान है अयोध्या
अयाेध्या। श्रीरामहर्षण मैथिल सख्यपीठ धर्मार्थ सेवा ट्रस्ट चारूशिला मंदिर, जानकीघाट में चल रहे दस दिवसीय श्रीराममंत्र महायज्ञ का उल्लास अपने चरम पर है। महोत्सव में भक्तों का भारी हुजूम उमड़ा है। श्रीरामहर्षण मैथिल सख्यपीठ चारूशिला मंदिर के श्रीमज्जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी वल्लभाचार्य महाराज ने कहा कि दस दिवसीय श्रीराममंत्र महायज्ञ का कार्यक्रम चल रहा है। पूरी अयाेध्यानगरी सिया बाेल की गूंज से गुंजायमान है। 108 कुंडीय यज्ञ मंडप में सौकड़ों वैदिक आचार्य के द्धारा निर्देशन में आहुति पड़ रही है। तो वही दूसरे सत्र में व्यासपीठ से श्रीरामकथा की अमृत वर्षा वृंदावन धाम के श्रीमद् जगद्गुरू द्वाराचार्य मलूकपीठाधीश्वर डॉ. राजेंद्रदेवाचार्य कर रहे है। व्यासपीठ से कथा का महत्व समझाते हुए मलूकपीठाधीश्वर डॉ. राजेंद्रदेवाचार्य जी ने कहा कि राम तो प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है, राम चेतना और सजीवता का प्रमाण है। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है। असीम ताकत अहंकार को जन्म देती है। लेकिन अपार शक्ति के बावजूद राम संयमित हैं।
वे सामाजिक हैं, लोकतांत्रिक हैं। वे मानवीय करुणा जानते हैं। वे मानते हैं पर हित सरिस धरम नहीं भाई। राम देश की एकता के प्रतीक हैं। मलूक पीठाधीश्वर जी ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम समसामयिक है।भारतीय जनमानस के रोम-रोम में बसे श्रीराम की महिमा अपरंपार है। जीवन की धन्यता भौतिक पदार्थों के संग्रहण में नहीं अपितु सुविचारों एवं सद्गुणों के संचयन में निहित है। जिसके पास जितने श्रेष्ठ एवं पारमार्थिक विचार हैं वह उतना ही सम्पन्न प्राणी है। आज समाज में अशांति कोई पशु या जानवर नहीं फैला रहा, बल्कि अपने स्वरूप से अनभिज्ञ भौतिक पदार्थ की दौड़ में लगा मनुष्य ही फैला रहा है। दूसरों को शांत करने से पहले खुद शांत होना होगा। शांति व आनंद का स्रोत केवल ईश्वर है जो भक्ति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
मनुष्य के अन्तःकरण में जो गुणों के बीज हैं, वे सत्संग और कुसंग के कारण अंकुरित होते हैं। अगर कुसंग के जल की वर्षा हो जाय तो अन्तःकरण में छिपे हुए दुर्गुण सामने आ जाते हैं। उन्होंने ने कहा कि व्यक्ति को कुसंग से बचना चाहिए, इसका तात्पर्य यह है कि अगर वर्षा ही नहीं होगी तो अंकुर भीतर से कैसे फूटेगा। अतएव यदि हम उन सहयोगियों के, जो हमारे दुर्गुणों को, हमारी दुर्बलताओं को बढ़ा दिया करते हैं, सन्निकट नहीं जावेंगे तो भले ही हमारे जीवन में दुर्गुणों के संस्कार विद्यमान हों, वे उभर नहीं पावेंगे।रामकथा के मंच पर श्रीहर्षण सौरभ ग्रंथ का विमोचन द्वाराचार्य स्वामी राजेन्द्र देवाचार्य सहित संतो ने किया।
इस ग्रंथ का लेखन पूर्व कुलपति प्रो. मिथिला प्रसाद त्रिपाठी ने किया है। अ.भा. संत समिति के अध्यक्ष अविचल दास महाराज, बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेन्द्र महाराज ने भी अपने विचारों से लोगों को अवगत कराया। जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य महाराज ने कहा कि आचार्यों के बताए मार्ग का अनुसरण श्रेयस्कर है।कथा में कार्यक्रम के संयोजक श्रीरामहर्षण मैथिल सख्यपीठ चारूशिला मंदिर के श्रीमज्जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी वल्लभाचार्य महाराज, जगद्गुरू रामदिनेशाचार्य, बिंदुगाद्याचार्य स्वामी देवेन्द्र प्रसादाचार्य, महंत रामशरण दास, डा रामानन्द दास, रसिक पीठाधीश्वर महंत जनमेजय शरण, महंत सुरेश दास, महंत अवधेश दास, महंत कृपालु रामभूषण दास,महंत रामजीशरण सहित हजारों की संख्या में संत साधक मौजूद रहें।