रामानुजाचार्य जी ने श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण के चतुर्थ दिवस कहा, संत-सत्पुरुषों ने अपनी विद्वता और तपस्या से भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की पताका सम्पूर्ण विश्व में फहराई

विश्व का सच्चा मित्र वह है जो अच्छे लोगों को आपस में जोड़े ।श्रीराम की पहली यात्रा सभी अच्छे लोगों को आपस में जोड़ने की थी।श्रीराम के कारण ही वशिष्ठ और विश्वामित्र एक हो गये।अयोध्या और मिथिला एक हो गयी। उक्त बातें जगद्गुरू रामानुजाचार्य रत्नेशप्रपन्नाचार्य ने कही। रामानुजाचार्य जी नंदीग्राम,भरतकुंड पर श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण कथा की अमृत वर्षा कर रहें है। कथा के चतुर्थ दिवस व्यासपीठ से कथा का मर्म समझाते हुए रत्नेशप्रपन्नाचार्य जी ने कहा कि महर्षि गौतम और अहल्या आपस में पुन: गये।विश्वामित्र जी ने भगवान राम से कहा कि अब जनकपुर की यात्रा कीजिए। यह जनकपुर की यात्रा क्या है ? यदि इस प्रश्न पर विचार करें तो हमें यह स्पष्ट प्रतीत होगा कि यह ज्ञान-मार्ग की यात्रा है । महाराज जनक उस समय के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी थे।उनके लिए वाक्य भी यही कहा गया कि वे ज्ञानियों में सिरमौर हैं। और यदि ज्ञान के पथ पर चलेंगे तो सबसे पहला काम है अहिल्या का उद्धार। अहिल्या पत्थर बनी हुई है। गोस्वामीजी कहते हैं कि यह बुद्धि ही अहिल्या है। इसका अभिप्राय है कि जब तक बुद्धि, जड़ से चेतन नहीं होगी तब तक हम ज्ञान मार्ग में आगे बढ़ने में समर्थ नहीं होंगे।भगवान के द्वारा अहिल्या-उद्धार का अभिप्राय है कि विषयासक्ति के कारण जो बुद्धि जड़ हो चुकी थी, उसको श्रीराघवेन्द्र ने चेतन किया। रामानुजाचार्य जी ने कहा कि संतों के सानिध्य से ही राष्ट्र और समाज का कल्याण सम्भव है। संत संगति से ही व्यक्ति के उत्तम चरित्र का निर्माण होने से वे संस्कारवान बनते हैं। संतों का सानिध्य समाज को सन्मार्ग दिखाता है। संत-सत्पुरुषों ने अपनी विद्वता और तपस्या से भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की पताका सम्पूर्ण विश्व में फहराई है। भारत की धरती प्राचीन काल से ही संतों की तपोभूमि है। संत ही समाज को सही मार्ग दिखाते हैं। इसलिए तपस्वियों के बताये मार्ग का अनुसरण करने से समाज में समरसता एवं भाईचारा बना रहता है।उन्होंने कहा कि सन्तों का सानिध्य समाज को एक सूत्र में बांधे रखता है। यह युगधर्म है। विचारों में मतभिन्नता हो सकती है, परन्तु सबका लक्ष्य और उद्देश्य एक ही है। सभी देश हित में कार्य कर रहे हैं। सन्त हमेशा दूसरों की भलाई कर परोपकार करते हैं। सन्तों के जीवन से प्रेरणा लेकर जीवन को और श्रेष्ठ बनाया जा सकता है।कथा में मणिराम दास छावनी के महंत कमलनयन दास, संत परमात्मा दास सहित बड़ी संख्या में कथा प्रेमी मौजूद रहें।