अखिलभारत जयगुरु संप्रदाय के मठ मंदिरों समेत में 29 से अधिक अखण्ड महामंत्र संकीर्तन केंद्रों, 125 करोड़ हस्तलिखित रामनाम के समर्पित मंदिरों की स्थापना जैसी असंख्य सेवाएं आज भी निर्बाध रूप से है जारी

अयोध्या। अखिलभारत जयगुरु संप्रदाय की ओर से सोमवार को बंगाली बाबा सीतारामदास ओंकारनाथ जी जयंती जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। इस अवसर पर रामनगरी के सुरसरि मंदिर भजन पूजन अर्चन के साथ वृहद भंडारा हुआ। आश्रम से जुड़े अखिलभारत जयगुरु संप्रदाय ट्रस्टी प्रियनाथ चटोपाध्याय ने बताया कि जयंती महोत्सव की शुरुआत सोमवार को सुबह 8 बजे जन्म आरती से हुआ इसके बाद पुष्पांजलि किया गया व भक्त बाबा का जीवन परिचय दिये। समारोह में सुबह 10 बजे से चैतन्य महाप्रभु मंदिर की मंडली ने संकीर्तन किया।दोपहर 12 बजे सामूहिक आरती होकर वृहद भंडारा किया गया। अखिलभारत जयगुरु संप्रदाय के ट्रस्टी प्रियनाथ चटोपाध्याय कहते है कि युवावस्था में ही श्री ठाकुर पूज्य सीताराम दास ओंकार नाथ देव जी परमगुरु शिव के दर्शन को प्राप्त कर पूर्णता प्राप्त की।आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। यह आत्म-संगोपन सिर्फ एक गृहस्थ के आदर्श को दर्शाने के लिए थी कि साधारण गृहस्थ कैसे जीवन व्यापन करे। यह देखकर उस समय के महान संत कहते थे अब तक लोग संतों के दर्शन के लिए आते थे अब वे दर्शन के लिए इस गृहस्थ के घर जाएंगे। प्रियनाथ जी अपने गुरु के बारें में बताते हुए कहते है कि सीतारामदास नाम उनके गुरुदेव ने पहले ही दिया था। तत्पश्चात ओंकारनाथ नाम का अवतरण हुआ। उसी समय 13 जनवरी 1937 को त्रिवेणी में गुरुदेव आनुष्ठानिक रूप से कौपिन धारण कर सीतारामदास ओंकारनाथ का नाम अपनाया। इसी दिन से कश्यप गोत्र के प्रबोधचंद्र ने सब कुछ त्याग दिया और संत श्री सीतारामदास ओंकारनाथ का आध्यात्मिक तपस्वी जीवन अच्युतगोत्रीय रामानुज रामानंद वैष्णव के रूप में आरम्भ हुआ। प्रियनाथ ने कहा कि श्री सीताराम दास ओंकार नाथ देव जी ने अपने शिष्यों को भगवान के पवित्र नाम लेना आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन आध्यात्मिक व्रतपालन उपवास और त्योहारों का पालन करना बताते हुए एक आदर्श गृहस्थ जीवन का निर्वाह करने का सीखा गये आज भी उनके अनुयायी अपने गुरु के बताये मार्ग का अनुशरण कर रहे है। जय गुरु सम्प्रदाय से जुड़ी इंद्राणी जी कहती है कि अखिलभारत जयगुरु संप्रदाय में मंदिरों की स्थापना की गई जीर्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया नरनारायण सेवा मानव जाति के लिए सेवा कपड़ा दान पिताओं को सहायता जिन्हें अपनी बेटियों की शादी करने की सेवा सैकड़ों गरीबों को आजीवन सहायता गरीब छात्रों के लिए नि: शुल्क स्कूल 29 से अधिक अखण्ड महामंत्र संकीर्तन केंद्रों की स्थापना 125 करोड़ हस्तलिखित रामनाम के समर्पित मंदिरों की स्थापना ऐसी असंख्य सेवाएं निर्बाध रूप से जारी रहीं।