सेवा,सिमरन और श्रद्धा के साथ मनाया गया शहीदों के सिरताज का शहीदी दिवस

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June 3, 2022

गुरु अर्जुन देव ने जाति धर्म के नाम पे बिखरे समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम किया:  जत्थेदार बाबा महेन्द्र सिंह

अयोध्या। अयोध्या स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा नज़रबाग में 3 जून शुक्रवार को गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर गुरु ग्रंथ साहिब जी के सम्पूर्ण पाठ की समाप्ति

के बाद अरदास और कीर्तन करके पांचवे गुरु जी के बलिदान को श्रद्धा के सुमन अर्पित किए गए ।इसके बाद गुरुद्वारा नजरबाग के सभी सेवादार और अयोध्या फैजाबाद नवाबगंज मास्किनवा मनकापुर सोहावल से आई संगत ने जत्थेदार बाबा महेन्द्र सिंह जी की सरपरस्ती श्रृंगारहाट राज सदन के सामने आम जनमानस और सृद्धालुओ को पारंपरिक छबील ठंडा शरबत और चने का प्रसाद वितरित करके अयोध्या नगरी से गुरु जी को सेवामई श्रद्धांजली अर्पित की गई।

जत्थेदार बाबा महेन्द्र सिंह जी ने बताया कि गुरु जी का जन्म 15 अप्रैल सन 1563 में हुआ और 30 मई 1606 ई. में गर्म तवे पे बैठा के सिर में तपता हुआ रेता डाल के तरह तरह के तसीहे दे के गुरु जी को शहीद कर दिया गया। मात्र 46वर्ष की आयु गुरु जी ने एक रचनाकार के रूप में अध्यात्म का सर्वोच्च स्वरूप गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया, समाज को एक नई दिशा और ऊर्जा देने के लिए कबीर,धन्ना जाट,रविदास, सैन नाई, नामदेव, शेख फरीद, त्रिलोचन, पीपा,सधना जैसे लगभग 15 शीर्ष भक्तों की बाणी गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित करके जाति धर्म के नाम पे बिखरे समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम किया ,लगभग 31 रागों में संकलित गुरु ग्रंथ साहिब का आध्यात्मिक स्वरूप गुरु की संगीत में प्रकांड विद्वता को दर्शाती है ।इसके अलावा गुरु जी को हिंदी,अवधी,संस्कृत,फारसी व अरबी आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान था।

शस्त्र और शास्त्रों में गुरु जी को महारत हासिल थी।आज पूरे विश्व में सेवा और अध्यात्म का केंद्र अमृतसर में स्थित हरिमंदिर साहिब स्वर्ण मंदिर का निर्माण कर, मूर्त रूप देकर हम सब को शिल्पकला और सेवा सिमरन का एक अलौकिक स्थान प्रदान किया।

सेवादार सरदार नवनीत सिंह ने बताया कि गुरु अर्जुन देव जी के शांत स्वभाव और कुशाग्र बुद्धि के श्रेष्ठ गुणों को देख पिता रामदास जी ने मात्र 18 साल की उम्र में ही उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी थी। गुरुगद्दी पर बैठते ही उन्होंने अपने पिता के आरंभ किए हुए सभी काम करना शुरू कर दिए। गुरु अर्जुन देव ने सिखों को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा धार्मिक और सामाजिक कार्यों में लगाने के लिए प्रेरित किया। बाद में इसे धर्म का अंग बना दिया गया। ऐसे मानवीय कार्य में सभी लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लेने लगे थे। आज हम सब मिलकर गुरु के शहीदी दिवस पर सेवा करते है। 

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