भरत जी का भ्रातृप्रेम समाज के लिये अनुकरणीय है: रत्नेशप्रपन्नाचार्य

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May 29, 2022

कथाव्यास ने कहा, रामराज्य न तो कहीं से लाना पड़ता है न बनाना पड़ता है हमें स्वयं पहले रामराज्य के योग्य नागरिक बनना पड़ता है

अयोध्या। सच्चा धर्म हमें प्रेम सिखाता है।प्रेम की व्याख्या हमें भरत चरित्र में दिखाई देता है।प्रेम हमें स्वार्थहीन होने सिखाता है।नि:स्वार्थता की अग्नि में तपकर ही प्रेम अपने उज्जवल रूप में अभिव्यक्त होता है।सर्वथा स्वार्थ शून्य व्यक्ति ही संसार में परिवर्तन ला सकता है।भरत जी अवध का सिंहासन ग्रहण करे ,धर्म उसका समर्थन कर रहा था।पर भरत के अन्त: करण ने इसका समर्थन नहीं किया।उन्होंने धर्म के स्थूल रूप को नहीं देखा,उसके सारतत्व को ग्रहण किया।भरत ने धर्म के स्थान पर परमधर्म को स्वीकार किया। उक्त बातें नंदी ग्राम भरत कुंड पर आयोजित श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण कथा के अष्टम् दिवस पर जगद्गुरू रामानुजाचार्य रत्नेशप्रपन्नाचार्य जी महाराज ने कही। स्वामी जी ने भरत चरित्र का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया। रामानुजाचार्य जी ने कहा कि भरत का परम धर्म है-सेवा धर्म।जिस रामराज्य को महाराज दशरथ अयोध्या में लाना चाह रहे थे उसके शिल्पकार श्रीभरत बने।क्योंकि रामराज्य की आधारशिला प्रेम है।श्रीभरत के रामप्रेम ने कैकेयी की कठोरता को भी पिघला रख दिया।रामराज्य का अर्थ प्रेम राज्य है और प्रेम हमें समर्पण सिखाता है।जहाँ पर केवल देना ही देना है लेना कुछ नहीं है उसी को रामराज्य कहते है। उन्होंने कहा कि श्रीराम और भरत दोनों की मान्यतायें एक है-जीवन में त्याग श्रेष्ठ है।जहाँ त्याग होगा वहाँ संघर्ष का स्थान ही नहीं रहेगा।आजकल भारत देश का हर नेता रामराज्य लाने की बात करते दिखाई देते हैं।किन्तु ध्यान रहे रामराज्य न तो कहीं से लाना पड़ता है न बनाना पड़ता है हमें स्वयं पहले रामराज्य के योग्य नागरिक बनना पड़ता है।जिस दिन भरत की तरह प्रेम और त्याग हमारे जीवन में आ जायेगा हम सम्पत्ति को अपनी नहीं प्रभु की मान लेगें उसी दिन रामराज्य की अवधारणा सत्य हो जायेगी।
जगद्गुरू जी ने कहा कि भरत जी का भ्रातृप्रेम समाज के लिये अनुकरणीय है।भ्रातृप्रेम पारिवारिक सामाजिक धर्म है।भरत के प्रेम को यदि हम समझ कर अपना लें तो परिवार का सारा झगड़ा समाप्त हो जायेगा।

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