शिद्दत से शिरोधार्य हुए आद्याचार्य स्वामी रामानन्दाचार्य

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January 15, 2023

भगवदाचार्य स्मारक सदन में धूमधाम से मनाई गई रामानन्दाचार्य की 723 वीं जयंती, संकटमोचन सेना के संयोजन में हुआ विविध कार्यक्रम

अयोध्या। स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत थे। रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य ने हिन्दू धर्म को संगठित और व्यवस्थित करने के अथक प्रयास किए। उन्होंने वैष्णव संप्रदाय को पुनर्गठित किया तथा वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया। सोचें जिनके शिष्य संत कबीर और रविदास जैसे संत रहे हों तो वे कितने महान रहे होंगे। 

माघ माह की सप्तमी संवत 1356 अर्थात ईस्वी सन 1300 को कान्यकुब्ज ब्राह्मण के कुल में जन्मे रामानंद जी के पिता का नाम पुण्य शर्मा तथा माता का नाम सुशीला देवी था। वशिष्ठ गोत्र कुल के होने के कारण वाराणसी के एक कुलपुरोहित ने मान्यता अनुसार जन्म के तीन वर्ष तक उन्हें घर से बाहर नहीं निकालने और एक वर्ष तक आईना नहीं दिखाने को कहा था।

8 वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार होने के पश्चात उन्होंने वाराणसी पंच गंगाघाट के स्वामी राघवानंदाचार्य जी से दीक्षा प्राप्त की। तपस्या तथा ज्ञानार्जन के बाद बड़े -बड़े साधु तथा विद्वानों पर उनके ज्ञान का प्रभाव दिखने लगा। इस कारण मुमुक्षु लोग अपनी तृष्णा शांत करने हेतु उनके पास आने लगे।

प्रमुख शिष्य स्वामी रामानंदाचार्य जी के कुल 12 प्रमुख शिष्य थे जिसमें संत अनंतानंद  संत सुखानंद  सुरासुरानंद  नरहरीयानंद  योगानंद  पिपानंद संत कबीरदास  संत सेजा न्हावी  संत धन्ना  संत रविदास  पद्मावती और संत सुरसरी। संवत्‌ 1532 अर्थात सन्‌ 1476 में आद्य जगद्‍गुरु रामानंदाचार्य जी ने अपनी देह छोड़ दी। उनके देह त्याग के बाद से वैष्ण्व पंथियों में जगद्‍गुरु रामानंदाचार्य पद पर रामानंदाचार्य की पदवी को आसीन किया जाने लगा।

जैसे शंकराचार्य एक उपाधि है उसी तरह रामानंदाचार्य की गादी पर बैठने वाले को इसी उपाधि से विभूषित किया जाता है। निर्वाणी अनी अखाड़ा हनुमानगढ़ी के श्री महंत मुरली दास महाराज ने कहा कि स्वामी रामानंदाचार्य न केवल राम भक्ति के संवाहक थे अपितु समस्त सनातन मानव समाज के लिए 13वीं सदी में आध्यात्मिक ऊर्जा  ज्ञान  दर्शन विज्ञान एवं चमत्कारिक कला से समाज को ओत-प्रोत किया वह आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।

दशरथ राज महल बड़ा स्थान के

श्रीमहंत बिंदुगाद्याचार्य स्वामी देवेंद्र प्रसादाचार्य जी ने कहा कि रामानंदाचार्य का ज्ञान दर्शन आज ज्यादा प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि स्वामी रामानंद को मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का महान संत माना जाता है। उन्होंने रामभक्ति की धारा को समाज के निचले तबके तक पहुंचाया। ये ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि द्वविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद। यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय स्वामी रामानंद को जाता है। उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे छुआछूत, ऊंच-नीच और जात-पात का विरोध किया।

निर्वाणी अनी अखाड़ा हनुमानगढ़ी के पूर्व प्रधानमंत्री महंत माधव दास महाराज ने कहा कि स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत थे। रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य ने हिन्दू धर्म को संगठित और व्यवस्थित करने के अथक प्रयास किए। उन्होंने वैष्णव संप्रदाय को पुनर्गठित किया तथा वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया। सोचें जिनके शिष्य संत कबीर और रविदास जैसे संत रहे हों तो वे कितने महान रहे होंगे।

संकट मोचन सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत संजय दास ने कहा कि जगद्गुरु रामानन्दाचार्य जी ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को आदर्श मानकर सरल रामभक्ति मार्ग का निदर्शन किया। उनकी शिष्य मंडली में जहां एक ओर कबीरदास, रैदास, सेननाई और पीपानरेश जैसे जाति-पाति, छुआछूत, वैदिक कर्मकांड, मूर्तिपूजा के विरोधी निर्गुणवादी संत थे तो दूसरे पक्ष में अवतारवाद के पूर्ण समर्थक अर्चावतार मानकर मूर्तिपूजा करने वाले स्वामी अनंतानंद, भावानंद, सुरसुरानंद, नरहर्यानंद जैसे सगुणोपासक आचार्य भक्त भी थे। उसी परंपरा में कृष्णदत्त पयोहारी जैसा तेजस्वी साधक और गोस्वामी तुलसीदास जैसा विश्व विश्रुत महाकवि भी उत्पन्न हुआ। जाति-पाति पूछे न कोई। हरि को भजै सो हरि का होई॥ 

आचार्यपाद ने बिखरते और नीचे गिरते हुए समाज को मजबूत बनाने की भावना से भक्ति मार्ग में जाति-पांति के भेद को व्यर्थ बताया और कहा कि भगवान की शरणागति का मार्ग सबके लिए समान रूप से खुला है।

हनुमत संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य हनुमानगढ़ी के गद्दी नशीन के शिष्य मानस मर्मज्ञ महंत डा महेश दास जी ने कहा कि स्वामी रामानन्दाचार्य जी का ज्ञानदर्शन जो समस्त मानव समाज को इह लोक से लेकर आध्यात्मिक जीवन में भी गंगा प्रवाह की तरह है जो समस्त कलुष का प्रक्षालन कर ईश्वर तक जीव को पहुंचा देता है।

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