अयोध्या श्री राम की भूमि के साथ गुरु और संतों की भूमि भी है: रामेश्वर बापू
राधा मोहन कुंज में बह रही रामकथा की रसधार, व्यासपीठ से गुजरात के प्रख्यात कथावाचक रामेश्वर बापू हरियाणवी कह रहें कथा
कहा, लोग गुरु को साधन मानते हैं लेकिन गुरु साधन नहीं गुरु साध्य है
अयोध्या। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन नगरी अयोध्या धाम के जानकी घाट स्थित राधा मोहन कुंज में इन दिनों श्रीराम कथा की अमृत वर्षा हो रही है। व्यासपीठ से रामकथा की अमृतमयी वर्षा गुजरात के प्रख्यात कथावाचक रामेश्वर बापू हरियाणवी कर रहें है। कथा के तृतीय दिवस पूज्य बापू ने कथा के प्रारंभ में भगवान राम की बात करते हुए बताया कि राम सत्य है राम ही प्रेम है राम ही करुणा है राम के पानी के लिए सद्गुरु का शनि देव श्रेष्ठ हर व्यक्ति के जीवन में गुरु होना चाहिए। गुरु बिना आदमी को ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती गुरु कैसा होना चाहिए जिसके पास जाने से शांति का अनुभूति हो जिसके पास बैठने से विश्राम की अनुभूति हो जिसके पास जाने से आध्यात्मिकता बढ़ जाए। कथाव्यास रामेश्वर बापू ने कहा कि बिना गुरु आदमी या भवसागर नहीं तैर सकता है। यह भव सागर को पार करने के लिए जीवन में गुरु की आवश्यकता है ईश्वर को पहचान करनी है ईश्वर को भी जानना है तो गुरु का आशीर्वाद जरूरी हबिना गुरु राम नहीं समझ में आएगा बिना गुरु ईश्वर समझ में नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज मानस के प्रारंभ में गुरु की वंदना करते हैं पूरे मानस में जितना महत्व गुरु का है इतना महत्व और किसी का नहीं है गुरु हमको जीने की राह सीखता है आजकल लोग गुरु को साधन मानते हैं लेकिन गुरु साधन नहीं है गुरु साध्य है गुरु शरीर नहीं है एक आध्यात्मिक ऊर्जा है बिना गुरु ईश्वर में समझ नहीं आएगा ना तो शास्त्र समझ में आएगा ना तो कथा समझ में आएगी इसीलिए जीवन में गुरु की आवश्यकता बहुत है। गुरु ही ब्रह्म है गुरु ही विष्णु है गुरु ही शिव है हम जो ग्रंथ की कथा कर रहे वो ग्रंथ भी हमारे लिए गुरु ही है और अयोध्या की भूमि ईश्वर की भूमि तो है लेकिन गुरु की भूमि भी है या वशिष्ठ महाराज भी आए हैं विश्वामित्र भी आए हैं। आज कहीं महापुरुष इस भूमि में नित्य सत्संग कर रहे हैं भजन कर रहे हैं तो यह राम की भूमि भी है और गुरु की भूमि भी है इसीलिए ईश्वर और गुरु की भूमि यानी अयोध्या धाम है। रामचरितमानस के कथा में आज पूज्य बापू ने भगवान शिव और पार्वती का विवाह करवाया जिस में भगवान शिव बारात लेकर हिमालय के वहां जाते हैं और हिमालय अपनी पुत्री पार्वती का हस्त भगवान शिव को समर्पित करते हैं यानी श्रद्धा और विश्वास का मिलन हुआ। अब जो चंचल श्रद्धा थी वो अग्नि में भस्म हो गई और स्थिर श्रद्धा का जन्म हुआ और स्थिर श्रद्धा ने भगवान शिव के साथ विवाह किया तो शिव और पार्वती का विवाह धूमधाम से मनाया गया। हर श्रोता इस विवाह की प्रसंग में जुड़े और शिव विवाह के दर्शन करते हुए कथा को विराम दिया गया। कथा से पूर्व यजमान ने व्यासपीठ का पूजन किया।