आरम्भ सकामता से , समापन निष्कामता से
यही ध्रुव चरित्र का वैशिष्ट्य: राधेश्याम

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December 17, 2022

मारवाड़ी भवन में श्रीरामकथा की अमृत वर्षा, व्यासपीठ कथा कह रहे प्रख्यात कथावाचक आचार्य राधेश्याम शास्त्री

अयोध्या। भगवान कहते हैं ध्रुव पहले प्राप्त करो, फिर त्याग करो। भक्त्ति प्रतीक्षा है, प्रयास नहीं। भक्त्ति समर्पण है, संकल्प नहीं। भक्ति का मूल आधार ही, सांसारिक मन पर आत्मघात हो जाये। उक्त बातें प्रख्यात कथाव्यास आचार्य राधेश्याम शास्त्री जी ने कही। अयोध्या के मारवाड़ी भवन में चल रहें श्रीराम कथा के तृतीय दिवस व्यासपीठ से कथा समझाते हुए व्यासजी कहते है कि सांसारिक मन कहता है, करने से कुछ होगा। भक्ति  कहती है,  करने से कुछ कुछ तो होगा पर वो नही होगा जिसके लिए तुम आये हो। अहंकार नये-नये नाम रखता है। कभी कहता है, संकल्प की शक्ति कभी कहता है, हिम्मत, साहस, व्यक्तित्व, आत्मा हजार नाम रखता है, लेकिन सबके भीतर तुम अहंकार को छिपा हुआ पाओगे, सबके भीतर मैं’माजूद है, मैं की कम-ज्यादा मात्रा मौजूद है। और वही बाधा है। आचार्य जी ने कहा कि जगत कल्याण जगत का उद्धार और जगत में के ऊपर कृपा करने के लिए अयोध्या के इस पावन भूमि को और गौरव प्रदान करने के लिए साक्षात परमात्मा भगवान श्री राम के रूप में अवतरित हुए और सारा समाज परमात्मा के अवतरित होने से आनंदित उल्लासित अपने आप को सौभाग्यशाली मानने लगा। कथा से पूर्व मारवाड़ी भवन से विशाल शोभायात्रा निकली।कथा में व्यासपीठ का पूजन यजमान श्रीमती अंजुल गुप्ता व जयप्रकाश ने किया। आये हुए अतिथियों का स्वागत प्रकाश स्वीट्स ने किया।

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