मारवाड़ी भवन में आचार्य राधेश्याम शास्त्री जी महाराज के श्रीमुख से भागवत कथा की हो रही अमृत वर्षा
अयोध्या। धर्म नगरी अयोध्या के मारवाड़ी भवन में इन दिनो भागवत कथा की अमृत वर्षा हो रही है। व्यासपीठ से प्रख्यात कथावाचक आचार्य राधेश्याम शास्त्री जी बताते हैं कि भागवत कथा में ज्ञान की सात भूमिकाओं की विस्तृत चर्चा करते हुए कहते है कि शुभेच्छा, सुविचारणा, तनुमानसा, सत्वापतत्ति, असंसक्ति:, पदार्थभाविनी:, तुर्यगा। उन्होंने कहा कि लोक कल्याण की भावना से कुछ भी करने की इच्छा को सुभेच्छा कहते हैं। भोगेच्छाओं, वासनाओं को मिटाने की, जन्म-मरण से छूटने की जो आकांक्षा है, वह ʹशुभेच्छाʹ है।
इस भूमिका वाला साधक अहंकार पोसने के लिए कर्म नहीं करता। वह व्यवहार में कुशल एवं मितभाषी होता है। प्रशंसा उसे आतिशबाजी के अनार जैसी लगती है। वह जगत में प्रसन्न रहता है भीतर से भीतर से उदासीन रहता है। उसे सब फीका फीका लगने लगता है। शास्त्री जी ने वामन अवतार की कथा सुनाते हुए कहा कि जब मानव दान में पूर्णता आ जाती है, तब भगवान स्वयं याचक बन कर आ जाते हैं और चरण कमल से कल्याण करते हैं। द्वारपाल बन कर उसकी रक्षा करते हैंं। कथा में भक्त पहले दिन से ही आनंद में डूबकर भजनो में झूमते एवं नाचते नजर आ रहे हैं।जैसे ही कथा के दौरान भगवान कृष्ण का जन्म हुआ पूरा मारवाड़ी भवन जयकारों से गूंज गया। आचार्य राधेश्याम शास्त्री जी ने कहा कि प्रभू के आते ही माया मोह के बन्धन टूट जाते हैं और संसार रूपी कारागार से मुक्त हो जाता है। भक्ती रूप जमना में आकंठ निमग्न हो जाता है। कथा के दौरान कृष्ण जन्म उत्सव और भजनों पर श्रद्धालु जमकर नाचे। भगवान को माखन मिश्री का भोग लगाकर प्रसाद वितरण किया। एक दूसरे को कृष्ण जन्म की बधाईयां दीं।