निष्काम भाव से भक्ति करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं: रामदिनेशाचार्य

बिंदुगाद्याचार्य के उत्ताराधिकारी महंत रामभूषण दास कृपालु जी के संयोजन में हो रही रामकथा
अयोध्या। श्रीराम जानकी मंदिर भरत तपोस्थली भरतकुंड में चल रही संगीतमय रामकथा में राम वनवास भरत मिलाप और राम-केवट संवाद की कथा का प्रसंग व्यासपीठ से जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य जी महाराज ने सुनाया। रामानन्दाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य जी ने कहा कि भरत जैसा भाई इस युग में मिलना मुश्किल है। राम-केवट संवाद का प्रसंग सुनकर भक्त भाव-विभोर हो गए। उन्होंने कहा कि भगवान राम मर्यादा स्थापित करने को मानव शरीर में अवतरित हुए। पिता की आज्ञा पर वह वन चले गए। भगवान राम वन जाने के लिए गंगा घाट पर खड़े होकर केवट से नाव लाने को कहते हैं लेकिन केवट मना कर देता है और पहले पैर पखारने की बात कहता है। केवट भगवान का पैर धुले बगैर नाव में बैठाने को तैयार नहीं होता है। राम-केवट संवाद का प्रसंग सुनकर श्रोता आनंदित हो गए। उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के आदर्श समाज में आज भी कायम है। भगवान प्रेम भाव देने वाले का हमेशा कल्याण करते हैं। कहा कि भरत ने भगवान राम के वनवास जाने के बाद खड़ाऊं को सिर पर रखकर राजभोग की बजाय तपस्या की। कहा कि जीवन में भक्ति और उपासना का अलग महत्व है। निष्काम भाव से भक्ति करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। उन्होंने कहा कि श्रीराम कथा मनोरंजन का साधन नही हैं बल्कि मन के मैल को धोकर पवित्र करने व भगवत प्राप्ति की ओर अग्रसर होने का एकमात्र माध्यम है। स्वामीजी ने कहा कि भगवान का स्वभाव है कि वह पशु पक्षियों का भी सम्मान करते हैं। उनके उपकार को भी नहीं भूलते हैं। मौजूदा दौर में मनुष्य किसी भी उपकार को नहीं मानता है।कथा की अध्यक्षता दशरथ राजमहल बड़ा स्थान के पीठाधीश्वर बिंदुगाद्याचार्य स्वामी देवेंद्रप्रसादाचार्य जी महाराज कर रहें है।आये हुए संतो का विशेष अभिनन्दन बिंदुगाद्याचार्य के उत्ताराधिकारी महंत रामभूषण दास कृपालु जी ने किया। गौरव शास्त्री व शिवेंद्र शास्त्री सहित सैकड़ों संत महंत एवं राम कथा के रसिक गण उपस्थित रहे।