प्रभावनापूर्वक सम्पन्न हुई भगवान की आहारचर्या

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May 5, 2023

राजा श्रेयांश ने दिया प्रथम आहार

अयोध्या। अयोध्या रायगंज दिगम्बर जैन मंदिर स्थित प्रांगण में चल रहे तीस चौबीसी तीर्थंकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अन्तर्गत पंचम दिवस केवलज्ञान कल्याणक के अन्तर्गत महामुनि भगवान ऋषभदेव की आहारचर्या प्रभावनापूर्वक सम्पन्न हुई, जिसमें महामुनि एक वर्ष 39 दिन तक भ्रमण करते रहे। किसी को भी जैन पद्धति से जैन साधु को आहार कराने की चर्या का ज्ञान न होने के कारण भगवान को आहार नहीं मिल सका। इसी क्रम में राजा श्रेयांस को पूर्व भव का स्मरण हो आया भगवान के दर्शन करते ही और उन्होंने नवधाभक्तिपूर्वक भगवान का पड़गाहन करके भगवान को इक्षुरस (गन्ने का रस) का आहार दिया। राजा श्रेयांस बने श्री अमरचंद, हेमचंद, नेमचंद जैन-टिकैतनगर परिवार ने भगवन को सर्वप्रथम आहार दिया। तत्पश्चात् लगभग 3000 लोगों ने भगवान को क्रम-क्रम से भगवान को आहारदान दिया। इस अवसर पर पंचाश्चर्य की वृष्टि देवों के द्वारा अयोध्या नगरी में की गई।
संहितासूरि प्रतिष्ठाचार्य श्री विजय कुमार जी ने बताया कि मध्यान्ह में भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान प्रगट हो गया, जिसके अन्तर्गत तीनों लोकों की समस्त वस्तुएं भगवान के ज्ञान में एक साथ झलकती हैं। भूत, भविष्य और वर्तमान दर्पण के समान दिखाई देता है। भगवान को केवलज्ञान होते ही सभी ऋतुओं के फल-फूल एक साथ वृक्षों पर आ जाते हैं। यह अतिशय है भगवान के केवलज्ञान का एवं जातविरोधी जीव एक साथ बैठकर खाते-पीते हैं, एक साथ खेलते हैं। परमपूज्य आचार्य श्री विपुलसागर जी महाराज के संघस्थ आचार्य श्री भद्रबाहु महाराज ने भगवान की दिव्यध्वनि के रूप में सभी को अिंहसा परमोधर्मः का उपदेश दिया। इसी क्रम में आचार्य श्री विशदसागर जी महाराज ने दिव्यध्वनि स्वरूप तत्त्वों का विवेचन किया एवं महोत्सव की सम्प्रेरिका गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने बताया कि भगवान के समवसरण में 12 सभाएं होती हैं, 8 भूमियां होती हैं एवं भगवान की दिव्यध्वनि 718 भाषाओं में खिरती है। 700 लघु भाषा एवं 18 महाभाषाओं में भगवान की दिव्यध्वनि खिरती है, जिसे सभी प्राणी अपनी-अपनी भाषाओं में समझ लेते हैं। इसी क्रम में प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने आये हुए भक्तों को सम्बोधन दिया। कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के कुशल निर्देशन में सम्पन्न हो रहे हैं। भगवान के मुख्य श्रोता बनने का सौभाग्य श्री जितेन्द्र सपना लुहाड़िया-खण्डवा को प्राप्त हुआ। भरत चक्रवर्ती बनने का चि. सम्यक जैन पुत्र अध्यात्म जैन-लखनऊ को प्राप्त हुआ एवं सौधर्म इन्द्र श्री अध्यात्म-अर्पिता जैन ने इस अवसर पर भगवान के समवसरण की भक्तिपूर्वक पूजा सम्पन्न की। समवसरण का अर्थ है कि यहां पर सभी जीवों को समान रूप से शरण प्राप्त हो, उसे समवसरण कहते हैं। अंत में 1008 दीपकों से भगवान के समवसरण की आरती सम्पन्न की गई। सायं के सांस्कृतिक कार्यक्रम में श्रीमती अनामिका, अंतिमा जैन-प्रीतविहार-दिल्ली के द्वारा सुंदर नृत्य नाटिका प्रस्तुत की। कार्यक्रम में महामंत्री श्री अमरचंद जैन, कोषाध्यक्ष श्री ऋषभ जैन, मीडिया प्रभारी पंकज जैन आदि सहित हजारों श्रद्धालुभक्त सम्मिलित हुए।

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