आचार्यों को दीक्षित-संस्कारित करने का केंद्र हैं श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा: महंत माधव दास
शास्त्राध्ययन का कीर्तिमान गढ़ कर काशी से लौटे हनुमानगढ़ी के युवा संत डा. आनंद शास्त्री का हुआ अभिनन्दन
अयोध्या। रामनगरी में बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी मल्लविद्या के साथ ज्ञान की परंपरा भी शिरोधार्य कर रही है।श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा ने कई विद्वान जगतगुरु दिए तो पूरे विश्व में मल्लविद्या कुश्ती का डंका भी बजाया यह कहना है श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा के पूर्व प्रधानमंत्री महंत माधव दास महाराज का। हनुमानगढ़ी के युवा संत डा. आनंद शास्त्री संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय से शास्त्राध्ययन का कीर्तिमान गढ़ कर काशी से रामनगरी अयोध्या लौटे तो हनुमानगढ़ी में नागा साधु संतों ने उनका अभिनन्दन किया। युवा संत डा. आनंद शास्त्री का अभिनंदन उनके गुरु शिवप्रसाद दास एवं निर्वाणी अनी अखाड़ा के पूर्व प्रधानमंत्री महंत माधवदास के संयोजन में संतों ने शास्त्री जी के स्वर्णिम भविष्य की कामना करने के साथ यह अपेक्षा भी जताई कि वह अपने ज्ञान का उपयोग लोक मंगल में करेंगे। जौनपुर के रहने वाले आनंद शास्त्री मात्र सात वर्ष की उम्र में साधु जीवन में दीक्षित हुए। इसके बाद उन्होंने घर की ओर मुड़ कर नहीं देखा। सदैव प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले आनंद शास्त्री व्याकरण, बेदांत, साहित्य एवं पुराणादि सहित चार विषयों में आचार्य अथवा परास्नातक हैं। हाल ही में उन्होंने काशी से विद्यावारिधि (पीएचडी) की उपाधि प्राप्त की है।
शिष्य को प्रशंसित करने के साथ उनका उत्साहवर्द्धन करते हुए महंत माधवदास महाराज कहते है कि आनंद शास्त्री आज के युवा संतों के लिए प्रेरणास्रोत है कि कैसे गुरु सेवा करते हुए भगवत अराधना कर अपनी दिनचर्या करते हुए शिक्षित हो कर समाज को एक नई दिशा दी जा सके। उन्होंने कहा कि आनंद शास्त्री जब भी अयोध्या रहते हैं तो नित्य पंचकोशी परिक्रमा भी करते है। डा आनंद शास्त्री के गुरु शिवप्रसाद दास कहते है आनंद एक सुयोग्य शिष्य है हमे इन पर गर्व है। इस मौके पर महंत विमल दास, अभिषेक दास, विराट दास, अजय दास आदि लोग मौजूद रहें।