कहा, चरित्रहीन का विपुल शास्त्राध्ययन भी व्यर्थ ही है
मारवाड़ी भवन में भागवत कथा की बह रही रसधार
अयोध्या। धर्म नगरी के मारवाड़ी भवन में भागवत कथा की रसधार बह रही है। व्यासपीठ से कथा सूत्रात्मक व्याख्या कर रहें प्रख्यात कथावाचक आचार्य राधेश्याम शास्त्री जी महाराज।आज कथा के पांचवें दिवस कथा की व्याख्या करते हुए कहते है कि चित्र कनक घट जैसा हो किन्तु चरित्र विष जैसा हो तो समझो पूतना है। पूतना का चित्र अच्छा किन्तु चरित्र गन्दा था। शिव का चित्र भयंकर भी है चरित्र अभयंकर है। उन्होंने कहा कि श्री राम, कृष्ण का चित्र भी अच्छा और चरित्र भी अच्छा।चरित्रहीन का विपुल शास्त्राध्ययन भी व्यर्थ ही है, जैसे कि अंधे के आगे लाखों-करोड़ों दीपक जलाना। आचार्य शास्त्री जी ने कहा कि एक चरित्र वह है, जो ऊपर से आरोपित है। एक चरित्र वह है, जो भीतर से आविर्भूत हुआ है। एक चरित्र है, जिसका हम अभ्यास करते हैं। और एक चरित्र है, जो सहज खिला है। सहज खिलनेवाले को ही चरित्र कहा जाता है। जो आरोपित है, अभ्यासजन्य है, चेष्टा से बंधा है, वह चरित्र नैतिक है।अवास्तविक चरित्र को व्यवहार-चरित्र कहा है। एक तो चेहरा है जो मुखौटा है।दूसरों को दिखाने के लिए। और एक स्वयं का मौलिक चेहरा है। एक तो व्यवहार है। सच बोलते हो, ईमानदारी से जीते हो, लेकिन वह भी व्यवहार है। सारी दुनिया के दुकानदार कहते हैं, आनेस्टी इज़ दि बेस्ट पालिसी। ईमानदारी श्रेष्ठतम नीति है। लेकिन इस पालिसी में होशियारी है , नीति है, लेकिन धर्म नहीं। ईमानदार इसलिए होना उचित है कि ईमानदारी में लाभ है। ईमानदारी स्वयं मूल्यवान नहीं है, लाभ के कारण बहुमूल्य है। उन्होंने कहा कि शिव का सर्व समावेशी देवत्व ही उनका वैशिष्ट्य है । शिव समन्वय वादी हैं। व्यासपीठ का पूजन यजमान श्रीमती अंजुल गुप्ता व जयप्रकाश ने किया। आये हुए अतिथियों का स्वागत प्रकाश स्वीट्स ने किया।