स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी की चतुर्थ पुण्यतिथि पर उनकी स्मृति फलक पर होगी

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February 22, 2023

मंदिर आंदोलन को अपनी करुणा से अभिसिंचित किया स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी ने : रामानुजाचार्य

सुग्रीव किला के सप्त दिवसीय उत्सव का समापन गुरुवार को, रामनगरी समेत पूरे भारत से आये संत धर्माचार्यो का होगा विशेष अभिनन्दन

अयोध्या। स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य उन चुनिंदा धर्माचार्यों में थे, जिन्होंने मंदिर आंदोलन की नींव मजबूत करने से लेकर उसे शिखर का स्पर्श दिया। आज जब राममंदिर का भव्य निर्माण हो रहा है, तब उन जैसे नायकों की स्मृति राम भक्तों को ताकत देने वाली है। वे साधना में उन्मीलित दिग्गज संत तो थे ही, उन्होंने पूरी जिम्मेदारी के साथ मंदिर आंदोलन को अपनी करुणा से अभिसिंचित किया।
गुरुवार को चतुर्थ पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी स्मृति फलक पर होगी। मंदिर आंदोलन जब परवान चढ़ा, तब उसके हमराह बनने वालों का तांता लग गया पर 1984 में शुरुआत के समय आंदोलन का केंद्र सुग्रीवकिला मंदिर बना। इसके पीछे मंदिर आंदोलन को धार देने की जुगत में लगे विहिप नेतृत्व की सोची समझी योजना थी। उन दिनों रामनगरी में जिन चुनिंदा संतों का सामाजिक सरोकार शीर्ष पर था, उनमें सुग्रीवकिला पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य प्रमुख थे। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि वे जिस राम ज्योति यात्रा के संवाहक थे, वह एक प्रकार से मंदिर आंदोलन का ही पूर्ववर्ती संस्करण था। इसका सूत्रपात 1973 में दिग्गज संत देवराहा बाबा ने किया था और इसकी कमान अपने योग्यतम शिष्य पुरुषोत्तमाचार्य को सौंपी थी।
राम ज्योति यात्रा के साथ देश के बड़े हिस्से का भ्रमण करते हुए पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज रामनगरी पहुंचे, तो त्रेतायुगीन स्थल सुग्रीवकिला को केंद्र बना कर यहीं के होकर रह गए। हालांकि ज्योति यात्राओं के माध्यम से राम नाम के प्रचार-प्रसार की उनकी मुहिम तब भी जारी रही स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने रामनगरी में पैठ बनाने की कोशिश में लगी विहिप को भी खुले दिल से संरक्षण प्रदान किया। वह 1984 को प्रारंभिक दौर था, जब एक ओर विहिप संतों की धर्मसंसद और सभा के माध्यम से पूरे देश में मंदिर आंदोलन को प्रभावी बनाने में लगी थी, दूसरी ओर वह अयोध्या में जमीन तैयार करने में लगी थी। इसके लिए उसे एक कार्यालय की दरकार थी। यह जरूरत स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने अपना आश्रम  मुहैया करा पूरी की रामनगरी पहुंचने वाले विहिप नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए आवास और भोजन की व्यवस्था के लिए भी सुग्रीवकिला का द्वार हमेशा खुला रहा। भगवान राम के प्रति अनन्य अनुराग और नेतृत्व- वक्तृत्व के स्वाभाविक गुण के चलते स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज स्वयं भी मंदिर आंदोलन के प्रभावी किरदार बनकर उभरे। वे न केवल 1986 में गठित रामजन्मभूमि न्यास के संस्थापक सदस्यों में रहे बल्कि स्थानीय स्तर पर परमहंस रामचंद्रदास एवं महंत नृत्यगोपालदास के साथ मंदिर आंदोलन की त्रिमूर्ति के अहम घटक बनकर प्रतिष्ठापित रहे। नौ मार्च 2019 को 96 वर्ष की अवस्था में वैकुंठवासी हुए स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य की सक्रियता गत एक दशक से कुछ थम सी गई थी, पर उनका दिल सदैव राममंदिर के लिए धड़कता रहा।
स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य के शिष्य एवं उत्तराधिकारी जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी विश्वेशप्रपन्नाचार्य कहते हैं, आज हमारी खुशी का ठिकाना नहीं है। हमारे पूज्य गुरुदेव ने जिस स्वप्न को साधने के लिए अपना जीवन समर्पित किया, वह साकार हुआ है।कार्यक्रम की देखरेख किला के पुजारी अन्नत  पदनाभाचार्य जी ने कर रहे।

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