मारवाड़ी भवन फतेहगंज में भागवत कथा का हुआ शुभारंभ, निकली शोभायात्रा
अयोध्या। मनः कल्पित अपनी इच्छाओं को ईश्वर विमुख होकर अनैतिक और श्रद्धा रहित पूर्ति करने की दुर्बुद्धि को ही धुन्धली कहते हैं। यह कहना है प्रख्यात कथावाचक राधेश्याम शास्त्री जी का। श्री शास्त्री जी मारवाड़ी भवन फतेहगंज में भागवत कथा के शुभारंभ दिवस पर व्यासपीठ से कहते है कि भोगने लायक पदार्थों पर भी वासना जागृत न हो, तब समझो वैराग्य की पहली सीढ़ी मिल गयी और अहं भाव का उदय न हो, तब समझना ज्ञान की अवस्था मिल गयी।वैराग्य के राग का रसिक बनो और भक्ति में निष्ठा रखो। उन्होंने कहा कि राग का अर्थ है, वस्तुओं को देख कर भोगने की आकांक्षा का जगना। शास्त्री जी कहते है कि मन दौड—दौड़ कर वहा जाएगा जहां भोगने योग्य पदार्थ होंगे। तो भोगने योग्य पदार्थ की उपस्थिति या गैर उपस्थिति का सवाल नहीं है, वासना का सवाल है। और यह बड़े मजे की बात है कि जहां पदार्थ न हों, वहां वासना ज्यादा प्रखर रूप से मालूम पड़ती है, जहा पदार्थ हों वहां उतनी प्रखर मालूम नहीं पड़ती। अभाव में और भी ज्यादा खटक पैदा हो जाती है। यह सूत्र कहता है कि जो आदमी सब छोड़ कर चला आया हो, सब छोड़ दिया हो उसने, यह भी वैराग्य की परम अवधि नहीं है, यह भी वैराग्य का चरम रूप नहीं है, क्योंकि हो सकता है राग भीतर रहा हो। यह भी हो सकता है कि छोड़ कर भागना राग का ही एक अंग रहा हो।
तो परम परिभाषा क्या होगी। सब भोगने योग्य मौजूद हो और भीतर भोगने की वासना न हो। कथा से पूर्व मारवाड़ी भवन से विशाल शोभायात्रा निकली।कथा में व्यासपीठ का पूजन यजमान श्रीमती अंजुल गुप्ता व जयप्रकाश ने किया। आये हुए अतिथियों का स्वागत प्रकाश स्वीट्स ने किया।
