राम भारत की संस्कृति के उच्चतम प्रतिमान: रत्नेशप्रपन्नाचार्य

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February 23, 2023

जानकी महल ट्रस्ट में श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण कथा का छाया उल्लास

अयोध्या। राम भारत की संस्कृति के उच्चतम प्रतिमान है। वो शील, संयम, सदाचार और मर्यादा की उत्कृष्ट प्रतिमा है। उक्त बातें जानकी महल ट्रस्ट में आयोजित श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण कथा के चतुर्थ दिवस व्यासपीठ से जगद्गुरू रत्नेशप्रपन्नाचार्य जी ने कही। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति प्रणाम, आदर और शीश झुकाने वाली संस्कृति है। हम सभी को सम्मान देने वाले प्राणी हैं। चरित्र सबसे मूल्यवान वस्तु है जो ज्ञान, तप, शील और सद्गुणों से उन्नत होता है। चिन्तन और आचरण से चरित्र पुष्पित और पल्लवित होता है। जिनके पास शुभ विचार है, उनका चरित्र भी उन्नत होता है। प्रयास यह रहे कि आपका चरित्र दृष्टांत, गाथा और उदाहरण बन जाए। जगद्गुरु जी ने कहा कि वाल्मीकीय रामायण के आरम्भ में राम के चरित्र की चर्चा है। देवर्षि नारद परमात्मा के मन हैं और सद्ग्रन्थों के मूल में प्रेरक सत्ता भी नारद ही हैं। सबसे उन्नत चीज चरित्र है और हमारी भारतीय संस्कृति में राम जैसा चरित्र किसी के पास नही है। श्रेष्ठता, दिव्यता व उच्चता के मानकों के प्रतिमान भगवान श्रीराम हैं।
उन्होंने कहा कि नैतिकता मूल वस्तु है, आप महान हैं, लेकिन शील सम्पन्न नही हैं तो आपकी महानता व्यर्थ है। मन की उत्पत्ति काम से हुई है, इसलिए वह काम से मुक्त नहीं हो पाता। मन को काम से मुक्त कर लेना जीवन का बड़ा पुरुषार्थ है। कथा से पूर्व आयोजक कुसुम सिंह व डॉ० दिनेश कुमार सिंह ने व्यास पीठ का पूजन किया।

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