जिस स्वरूप में देखना चाहते हो उसी में दर्शन देते हैं भगवान, बस आपमें आस्था हो: अधिकारी राजकुमार दास
श्री सर्वेश्वर गीता मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान मेंराधा मोहन कुंज मंदिर में हो रही अष्टोत्तरशत श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव

अयोध्या। भगवान की कोई आकृति नहीं होती है। भक्त जिस भाव से प्रभु में अपनी आस्था रखता है भगवान उसी स्वरूप में भक्त के समक्ष प्रकट होते हैं।यह बात मंगलवार को श्रीमद् जगद्गुरु निम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर स्वभु द्वाराचार्य श्री राधामोहन शरण देवाचार्य जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के पंचम दिवस की कथा में कही।देवाचार्य जी ने कहा कि मनुष्य को प्रतिदिन ईश्वर के भजन करना चाहिए। इससे मनुष्य को आत्मिक शांति व शुद्धता मिलती है। जगद्गुरू जी ने भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया तथा भजनों की प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि मां सरयू पावन पवित्र नदी है। सरयू में स्नान से मनुष्य को पापकर्मों से मुक्ति मिलती है। भगवान कृष्ण ने भी यमुना का उद्धार किया था जो कि बाद में चलकर जन-जन की आस्था का केन्द्र बनी।

जानकी घाट स्थित नवनिर्मित भव्य श्री राधा मोहन कुंज मंदिर में श्रीमद् भागवत कथा की अमृत वर्षा के पंचम दिवस पर जगद्गुरू जी ने कहा कि सच्चा धन भगवान का नाममात्र है। कलियुग में नाम और दान का बहुत अधिक महत्व है। अधिक से अधिक भगवान के नाम का स्मरण करे और दान करके घमंड़ न करे। जीवन में अच्छे संकल्प के साथ कार्य करें। स्वामी जी कहते है कि मानव को जीवन में हमेशा गौ माता की सेवा करनी चाहिए। गौ माता के शरीर में 36 करोड़ देवी देवताओं का निवास करते हैं। गाय का संरक्षण करने से मनुष्य का कल्याण हो जाता है। कथाव्यास जगद्गुरू जी ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान गंगा है। इसे सुनने के लिए देव भी आतुर रहते हैं।उन्होंने बताया कि सुनीति के मार्ग को जो मनुष्य छोड़कर सुरुचि के मार्ग पर चलता है निश्चित ही उसको अंत में पछताना पड़ता है। इसलिए हर मनुष्य को हर स्थिति में सुनीति के मार्ग पर अवश्य चलना चाहिए।
आज की कथा में प्रसिद्ध पीठ श्री रामबल्लाभाकुंज के अधिकारी राजकुमार दास महाराज पहुंचे और उन्होंने राधामोहन शरण देवाचार्य का आशीर्वाद लिया। अपने सम्बोधन में अधिकारी राजकुमार दास ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने रामचरित मानस में स्पष्ट किया है कि जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी अर्थात भगवान को पिता तुल्य मानने वाले को पिता-माता के समान मानने वाले को माता भाई व सखा के रूप में मानने वाले को भाई व सखा के सहित जैसे स्वरूप में देखना चाहता है उसी स्वरूप में भगवान के भक्त को दर्शन होते हैं। आये हुए अतिथियों का स्वागत राधामोहन शरण देवाचार्य जी के शिष्य महंत सनत कुमार शरण ने परम्परागत तरीकें से किया। कथा में तुलसीदास जी की छावनी के महंत जनार्दन दास, वैदेही भवन के महंत रामजीशरण, राम हर्षण कुंज से जुड़े संत राघव दास सहित बड़ी संख्या में संत साधक व भक्त मौजूद रहें।
