राम नाम की बड़ी अद्भुत महिमा है बस, जरूरत है श्रद्धा, विश्वास और भक्ति की: ब्रह्मर्षि डॉ रामविलास दास वेदांती
अयोध्या। श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण कथाहिंदू धाम मंदिर अयोध्या में चल रही है। व्यासपीठ से कथा का रसास्वादन ब्रह्मर्षि डॉ रामविलास दास वेदांती जी ने रामायण का सार भगवान का नाम की महिमा पर व्याख्यान किया।उन्होंने कहा कि भगवान राम हमारे जीवन के प्रत्येक रंग में समाए हुए हैं। हमने पाश्चात्य सभ्यता को काफी हद तक अपनाया, परंतु ‘राम-राम’ कहना नहीं छोड़ा। हम प्रतिदिन अच्छे बुरे अवसरों पर राम नाम ही लेते हैं।
आज भी हम ‘राम-राम’ या ‘जय रामजी की’ कहकर अभिवादन करते हैं। जीवन के अंतिम समय में बिछुड़ने पर राम-राम का ही उल्लेख होता है। समस्या के आने पर, विपत्तियों से घिरने पर ‘हे राम’ अथवा ‘अरे राम’ सहसा ही हमारे मुख से निकल पड़ता है। जीवन में प्रसन्नचित होने पर हम रामजी की कृपा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
राम नाम की बड़ी अद्भुत महिमा है। बस, जरूरत है श्रद्धा, विश्वास और भक्ति की। राम नाम स्वयं ज्योति है, स्वयं मणि है। राम नाम के महामंत्र को जपने में किसी विधान या समय का बंधन नहीं है। राम का नाम जपने से हो जाता है मानव का कल्याण।
वेंदाती जी ने बताया कि राम से बड़ा राम का नाम है अर्थात राम मिले ना मिले लेकिन राम का नाम जपना मात्र ही मानव के कल्याण के लिए काफी है। उन्होंने कहा कि राम नाम में बहुत शक्ति है, क्योंकि राम का नाम वैसे तो केवल दो अक्षर का ही होता है परंतु इस दो अक्षर के नाम में संपूर्ण संसार का रहस्य छिपा है। इसलिए 2 अक्षर के इस प्यारे से नाम राम का जाप प्रत्येक प्राणी को करना चाहिए, क्योंकि राम नाम ही एक ऐसा मूल मंत्र है जिसका जाप करने से मनुष्य अपने सांसारिक दु:खों पीड़ा से मुक्ति पा सकता है और संसार रूपी भवसागर से पार उतर सकता है। उन्होंने रामायण का एक प्रसंग सुनाते हुए बताया कि जब राम रावण की लंका पर चढ़ाई करने की ठान लेते हैं और नल-नील नामक 2 वानर भाइयों की मदद से सौ योजन अथाह सागर पर सेतू बनाने की योजना बनाते हैं। लेकिन जब वानरों द्वारा सागर में फेंके जाने वाले पत्थरों पर भगवान राम अपने नाम को लिखा देखते हैं तो वह सोचते हैं कि इस पर राम नाम क्यों लिखा जा रहा है। इस पर बल बुद्धि के ज्ञाता श्री हनुमान ने कहा कि सृष्टि में युगों युगों तक राम नाम के इस सेतू द्वारा ही लोग राम नाम लिखे इन पत्थरों में श्रीराम के दर्शनों को अनुभव करेंगे। कार्यक्रम के संयोजक डा राघवेश दास वेदांती जी ने आये हुए अतिथियों का स्वागत किया।