शिवपाल यादव के साथ ने सपा को किया मजबूत, मैनपुरी में मिली ऐतिहासिक जीत

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December 13, 2022

अभी सपा के लिए जश्न ही नहीं, सबक भी हैं नतीजे

संगठन की सक्रियता और नेतृत्व के भरोसे से मिली कामयाबी

अखिलेश ने अपना गढ़ ही नहीं बचाया बल्कि भविष्य के सियासी सफर का सबक भी लिया

2004 में शिवपाल सिंह प्रदेश अध्यक्ष थे
तब लोकसभा में 39 सीटें मिली थीं उपचुनाव में यह संख्या 41 तक पहुंच गई

लखनऊ। समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव जीत कर सिर्फ अपना गढ़ ही नहीं बचाया बल्कि भविष्य के सियासी सफर का सबक भी लिया है। इस चुनाव से साफ है कि आपसी एकजुटता और मतदाताओं को जोड़े रखने की रणनीति ही जीत का रास्ता दिखाएगी।
मैनपुरी की तरह संगठन और नेतृत्व की जुगलबंदी को आगे भी बरकरार रखना होगा। तभी लोकसभा चुनाव-2024 की तस्वीर खुशनुमा बनाई जा सकेगी मैनपुरी से मिली ऊर्जा का सदुपयोग कर पार्टी को अभी से लोकसभा की तैयारी करनी होगी।
समाजवादी पार्टी का इतिहास रहा है कि शीर्ष नेतृत्व और संगठन की जुगलबंदी से उसे हमेशा बंपर बहुमत मिला है। 2004 में शिवपाल सिंह प्रदेश अध्यक्ष थे।
तब लोकसभा में 39 सीटें मिली थीं। उपचुनाव में यह संख्या 41 तक पहुंच गई। मैनपुरी में भाजपा के एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद शिवपाल मैदान में उतरे और अखिलेश ने उनका साथ दिया। हर जाति के नेताओं को पुख्ता रणनीति के तहत उनकी बिरादरी वाले बूथ पर जिम्मेदारी दी गई। एक-एक मतदाता को मुलायम सिंह यादव के नाम और काम की याद दिलाई गई तो मतदाताओं ने भी नेताजी को श्रद्धांजलि दी।

डिंपल यादव 2.88 लाख से विजयी रहीं। सपा ने घर की सीट बचा ली, लेकिन अब आगे का रास्ता तय करने के लिए उसके सामने कई चुनौतियां हैं। यह वक्त पार्टी के लिए टर्निंग प्वाइंट है। यह चुनाव बताता है कि पूर्व में हुए आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में यदि मैनपुरी की तरह रणनीति अपनाई गई होती तो दोनों सीटें सपा के हाथ आ सकती थीं। फिलहाल राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मैनपुरी का सबक लोकसभा चुनाव में खूब काम आएगा। बशर्ते सपा पूरी तल्लीनता के साथ मैनपुरी में सामने आने वाली समस्याओं से सबक लेते हुए भविष्य की रणनीति बनाये।

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