कोशलेशसदन मंदिर के सभागार रामानुजीयम में राम कथा की हो रही अमृत वर्षा
अयोध्या। नौ दिवसीय रामनवमी मेले के तीसरे दिन रामनगरी के दर्जनों मंदिरों में चल रही रामकथाओं में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ गई है। कोशलेशसदन मंदिर राम जन्म महोत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है।
कोशलेशसदन मंदिर के सभागार रामानुजीयम में कथा का क्रम आगे बढ़ाते हुए जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य विद्याभास्कर ने रावण के कुत्सित साम्राज्यवाद की ओर ध्यान आकृष्ट कराया। उन्होंने बताया कि रावण भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था और इसके लिए उसने किष्किंधा और यहां के शासक बालि को माध्यम बनाया। यद्यपि बालि बहुत वीर था और रावण को पराजित कर चुका था पर रावण ने कूटनीति का आश्रय लेकर बालि से मित्रता का ढोंग किया। रावण ने बालि से मित्रता की आड़ में किष्किंधा को अपने उपनिवेश के तौर पर विकसित करना शुरू किया। वे भगवान राम थे, जिन्होंने रावण का अंत करने से पूर्व उसकी इस साजिश का उन्मूलन किया।जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य विद्याभास्कर जी ने अपनी रामकथा के तीसरे सत्र में कहा कि जब भक्त के पास धैर्य की धीरता व संयम का साहस हो तो सुख व आनंद स्वयं पास आ जाते हैं और परीक्षा की घड़ी समाप्त हो जाती है। विपत्ति में भी जो अपने धैर्य का त्याग न करे वह धीर पुरुष कहा जाता है। उन्होंने कहा कि धीरता आत्मा का गुण है। शूरता शरीर का, धीरता आत्मा का व वीरता मन के बल हैं। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम धीरशाली हैं और वे प्रजा के हित को ही अपना हित मानते हैं। बुद्धिमान, मतिमान एवं प्रतिभावान इन तीनों में श्री राघवेंद्र सरकार पारंगत हैं। उन्होंने कहा कि श्रीराम सर्वप्रिय हैं। उनके धैर्य, साहस, संयम, त्याग व प्रेम का हर किसी ने सम्मान किया। कथा श्रवण करने पहुंचे श्रीमहंत धर्म दास महाराज का स्वागत किया गया।