श्रीमहंत करुणानिधान शरण जी महाराज के पावन अध्यक्षता में बह रही भागवत कथा की रसधार
अयोध्या। रामनगरी को संतो की सराह भी कही जाती है यहां अनेक भजनानंदी संत हुये है जिनकी त्याग तपस्या साधना उच्च कोटि की रही। उन्हीं संतों में एक थे परमपूज्य झुनझुनियां बाबा जी महाराज। झुनझुनियां बाबा की तपोस्थली के रुप मे सुविख्यात श्री सियारामकिला झुनकी घाट पर इन दिनों श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव की अमृत वर्षा हो रही है। जिसमें व्यासपीठ से भागवत कथा की अमृत वर्षा प्रख्यात कथावाचक प्रेममूर्ति स्वामी प्रभंजनानन्द शरण जी महाराज कर रहे है। यह महोत्सव मंदिर के श्रीमहंत करुणानिधान शरण जी महाराज के पावन अध्यक्षता में चल रहा है। कथा के छटवें दिवस पर कथा में सुदामा व परमात्मा श्री कृष्ण की मित्रता की कथा सुनाते हुए कथा व्यास स्वामी प्रभंजनानन्द शरण जी ने कहा कि यदि मित्रता करना सीखना है तो हमें सुदामा की त्याग और परमात्मा के समर्पण की कथा अवश्य सुनना चाहिए। मित्रता निस्वार्थ व निष्काम भाव से करना चाहिए। मित्रता में जहां स्वार्थ आता है वहां मित्रता मित्रता नहीं रह जाती। बल्कि एक स्वार्थ से परिपूर्ण संबंध बन करके रह जाता है। उन्होंने कहा कि मित्रता में त्याग और समर्पण अत्यधिक आवश्यक है एक तरफ जहां सुदामा अत्यंत गरीब होते हुए भी परमात्मा श्री कृष्ण से स्वार्थ नहीं रखता है जबकि सुदामा परमात्मा श्री कृष्ण का बालसखा है। वहीं दूसरी ओर परमात्मा श्री कृष्ण जब सुदामा जी को अपने पास आया हुआ देखते हैं तो मित्र को किसी भी प्रकार की ग्लानि न हो यह ध्यान रखते हुए सुदामा के दिए हुए चावल अत्यंत प्रेम के साथ खाते हैं और अपना सर्वस्व सुदामा के लिए समर्पित कर देते हैं। कथा वाचक ने कहा कि जहां पर त्याग और समर्पण की भावना है मित्रता वही है और मित्रता का असली स्वरूप भी यही है।कथा से पूर्व व्यासपीठ का पूजन आयोजक विकास कुमार हथदह पटना ने किया। यह कथा महोत्सव स्व मुरारी सिंह जी की पावन स्मृति में हो रहा है।कार्यक्रम में सियारामकिला से जुडे शिष्य परिकर मौजूद रहे।