शिद्दत से शिरोधार्य हुए प्रेमावतार पंचरसाचार्य श्री स्वामी राम हर्षण दास

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October 15, 2022

108 कुण्डीय श्री राममन्त्र महायज्ञ महोत्सव  की रजत जयंती पर लाखों शिष्य परिकरों ने आचार्य श्री को किया याद, समर्पित भाव से किया सेवा

मैथिल सख्यपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वल्लभाचार्य जी महाराज ने अद्वितीय राम भक्तों के महाकुंभ का किया सफल आयोजन, रामनगरी के संतो ने महोत्सव को खूब सराहा

अयोध्या। मैथिल सख्यपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वल्लभाचार्य जी महाराज चारुशीला आश्रम जानकीघाट  अयोध्या के सानिध्य मे चल रहे 108 कुण्डीय श्री राममन्त्र महायज्ञ महोत्सव का भव्य समापन हो गया। यह महोत्सव रजत जयंती के रुप में मनाया गया जिसमें पूरे भारत से संत धर्माचार्यों ने अपने वाणी से आचार्य श्री को श्रद्धा सुमन अर्पित कर उनके कीर्ति व व्यक्तित्व को सराहा।

स्वामी जी महाराज का जन्म 25 मई 1917 को विंध्यक्षेत्र वर्तमान सतना जिला प्रदेश के पोंड़ी कला नामक ग्राम मे ऊर्ध्वपुण्य तिलक के साथ हुआ। मस्तक पर तिलक की स्पष्ट रेखाओं के कारण आपका नाम तिलकधारी पड़ गया। आपके माता- पिता दोनों रामभक्त थे। पूज्य पिता जी का नाम पं० रामजीवन शरण त्रिपाठी एवं माता जी का नाम रानी जी था। आपश्री की डेढ़ वर्ष की अवस्था में  पिता जी श्री जगन्नाथ पुरी दर्शनार्थ गए। वहीं उनका महाप्रयाण हो गया। अतः आपका लालन पालन माता जी के द्वारा हुआ। आप गौरांग वर्ण अति कुशाग्र बुद्धि के छात्र थे। बचपन में आप को श्री राम जी का स्वरूप बनने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ जिससे सन्त समाज मे आप ख्याति श्री राम जी के नाम से हुई।

अध्ययनोपरान्त आप अध्यापनकार्य करने लगे। जिसके कारण गृह जीवनकाल मे आप पण्डित जी के नाम विख्यात रहे।

आपकी माता जी श्री किशोरी जी को अपनी बेटी के रूप में मानती थी।  सन 1933 से आपके साथ धूमधाम के साथ श्री सीताराम विवाहोत्सव मनाने लगी। जो अभी भी आप श्री की जन्मभूमि पूरी धाम में द्वितीय से सप्तमी तक मनाया जाता है। जिसमें देश के कोने-कोने से लोग पधारते हैं।

आप बाल्यकाल से ही भगवान के भक्त थे। सदैव घर में संतों का आना-जाना बना रहता था। एक दिन भजनानंदी संत श्री बन्टी दास जी महाराज आपके घर आकर बोले पंडित जी आप पढ़ाना छोड़ दीजिए। आप ने कहा महाराज जी! घर में श्री सीताराम विवाहोत्सव समैया का आयोजन होता है।अध्यापन कार्य से जो कुछ पैसा मिल जाता है उससे संतों की सेवा होती है। फिर अध्यापन कार्य करना तो धर्म का ही कार्य है। बंटी दास महाराज जी ने कहा आपको इससे बड़ा काम करना है। संसार में आप केवल इतनी कार्य के लिए ही नहीं आए। 

संत आज्ञा मानकर आप विद्यालय जाकर त्यागपत्र दे दिए।

इसके बाद श्रीमद्भागवत, वाल्मीकीय रामायण जी कथा उपदेश से जनकल्याण करने लगे। गृह जीवन में ही आप के अनेक शिष्य प्रशिष्य हो चुके थे। इसी बीच खजुहा धाम का स्थान प्राप्त हुआ।

एक दिन दिव्य स्वप्न दर्शन के बाद भगवान के दर्शन की त्वरा मे श्रीअयोध्या धाम आए। श्री कनक भवन दर्शन करने जाते समय मार्ग में ही एक विशालकाय वानर आकर आपकी वस्त्रों को उतार कर वृक्षारूढ़ हो गया। आप श्री को पहचानने में देर नहीं लगी कृपाल प्रार्थना करने लगे आप मेरे वही ईस्ट श्री हनुमान जी महाराज है , तो कृपा कर वस्त्रों को प्रदान कर दें।यदि आप वस्त्र प्रदान कर देंगे तो मैं समझ जाऊँगा कि आप संत वेश में देखना चाहते हैं।

प्रार्थना करते ही वानर भगवान तत्काल उसी समय सुरक्षित वस्त्र लौटा दिए। मंदिर से श्री राम कुंज रामघाट वापस आकर पंडित अखिलेश्वर दास जी महाराज के श्री चरणों मे विरक्त दीक्षा हेतु निवेदन किए। इस प्रकार भगवदिच्छा मानकर सन 1954 की अक्षय नवमी को विरक्त दीक्षा प्राप्त हुई। कई बार दर्शन देकर श्री किशोरी जी द्वारा अग्रज भाव की पुष्टि की गई। श्री राम मंत्र जप , भजन ,अनुष्ठान का क्रम अनवरत चलता रहा। श्री खजुहा धाम मे विलक्षण प्रेम समाधि हुई। जिसमें चारों ओर श्री श्री सीताराम जी महाराज का दर्शन होता था।

श्री मार्कण्डेय आश्रम में प्रेम यज्ञ के बाद मैथिल सख्य रस से परिपूर्ण श्री प्रेमरामायण नामक महाकाव्य की रचना हुई। समय क्रम से सरकार श्री द्वारा तैतिस कोटि देव जैसे तैतिस ग्रन्थों की रचना की गई। 

श्री अयोध्या धाम के अतिरिक्त देश की अन्य कई स्थानों पर आपश्री के द्वारा मंदिर स्थापित हैं। जहाँ विधिवत भगवान का पूजन होता है। आप श्री के मना करने के बाद भी अयोध्या धाम के आचार्य कृपाशंकर जी जैसे विशिष्ट संत भक्तों द्वारा देवर्षि शिखर  सम्मान से सम्मानित किया गया था। नित्य जप के अतिरिक्त स्वामी राम हर्षण दास जी के द्वारा सविधि अनुष्ठान पूर्वक तेरह करोड़ श्रीराम मन्त्र जी का जप किया गया था। जिसकी दशांश आहुतियों हेतु सन 1997 मे 800 कुंटल हवन सामग्रियों से विशालतम श्री राम मंत्र महायज्ञ का आयोजन  किया गया था।  उसी राम मंत्र महायज्ञ की रजत जयंती का महा महोत्सव जगतगुरु वल्लभाचार्य जी की पावन सानिध्य में नव दिवसीय कार्यक्रम के रूप में चला। स्वामी जी के शिष्य डॉ0 भारत प्रसाद मिश्र मिथिला विहारी दास श्री पोंड़ी धाम के द्धारा रचित ग्रंथ का विमोचन भी हुआ। व्यवस्था के तौर पर रीवा के महंत उद्धव दास व चारुशिला मंदिर के संत हरिकेश्वर दास लगें रहें।

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