श्रीराम इस राष्ट्र की प्राण तत्व हैं: चिदम्बरानन्द सरस्वती

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January 23, 2024

कहा, “श्रीराम” संयम,शांति, सौहार्द, एकता एवं समन्वय ही धर्म का वास्तविक स्वरूप है

राम महल वैदेही भवन में चल रहे कथा में स्वामी चिदम्बरानन्द सरस्वती जी ने भरत जी का राम के प्रति प्रेम का बहुत ही सुंदर वर्णन किया, भक्तजन भाव विभोर में डूब गए

अयोध्या। भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होते ही संत साधकों ने दीपामालाएं सजाकर दीपोत्सव मनाया। रामनगरी के राम महल वैदेही भवन में चल रहे रामकथा महोत्सव में दीपोत्सव मनाकर खुशी का इजहार किया गया। व्यासपीठ से कथा की अमृत वर्षा कर रहें  मुम्बई से चलकर आये सनातन धर्म प्रचारक एवं प्रखर राष्ट्रवादी चिन्तक व संस्थापक चिद्ध्यानम आश्रम व गौशाला, चिदसाधना साध्यम ट्रस्ट, मुंबई के महामंडलेश्वर स्वामी चिदम्बरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि ये जन्म धन्य हो गया। हमारे आराध्य अपने निज भवन में विराज गयें। उन्होंने कहा कि श्रीराम इस राष्ट्र की प्राण तत्व हैं। जो राष्ट्र का मंगल करें, वही राम हैं। जो लोकमंगल की कामना करें, वही राम हैं। जहां नीति और धर्म है, वहां श्रीराम हैं। संयम,शांति, सौहार्द, एकता एवं समन्वय ही धर्म का वास्तविक स्वरूप है। स्वामीजी ने कथा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा कि श्रीराम जी के वन गमन पर राम भारद्वाज संवाद श्रीराम वाल्मीकि संवाद और चित्रकूट निवासी चक्रवर्ती महाराज का महाप्रयाण गुरूदेव भगवान वशिष्ठ भरत जी संवाद और भरत जी का चित्रकूट के लिए प्रस्थान और भारत जी का श्रृंगवेरपुर में विश्राम भरत की भारद्वाज संवाद आदि का विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने कहा कि श्रीराम साक्षात धर्म विग्रह हैं। राम एक ऐसे दीप हैं, जो कभी बुझ नहीं सकते। राम भारत की कालजयी सनातन संस्कृति का मेरुदंड हैं। श्रीराम के अवलंबन का अर्थ मर्यादा, शील, चरित्र और संयम का अनुगमन है। राम-स्मृति सर्वथा कल्याणकारी है। जो लोग मुक्ति और गरिमापूर्ण जीवन की आकांक्षा रखते हैं, उन्हें श्रीराम की शरण लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राम वन गमन की खबर सुनते ही भरत जी का घोर विलाप देखने सुनने को मिला ,भरत द्वारा माता कैकई और मंथरा को राम की महत्ता बताना फिर अयोध्या वासियों के साथ ,सभी माता के साथ राम जी से मिने के लिए अयोध्या से प्रस्थान। भरत जी का राम के प्रति प्रेम का बहुत ही सुंदर वर्णन स्वामी जी के मुखारविंद से सुनने को मिला। भक्तजन भाव विभोर में डूब गए।

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