कहा, श्रीकृष्ण आनंद स्वरूप, कृष्ण के रूप में आनंद ही प्रकट हुआ
अयोध्या। अहंकार का सबसे बड़ा शत्रु आनंद है। जहाँ आनंद और प्रेम है वहां अहंकार टिक नहीं सकता, उसे झुकना ही पड़ता है। समाज में एक बहुत ही उच्च स्थान पर विराजमान व्यक्ति को भी अपने छोटे बच्चे के सामने झुकना पड़ जाता है। जब बच्चा बीमार हो, तो कितना भी मजबूत व्यक्ति हो, वह थोडा असहाय महसूस करने ही लगता है। प्रेम, सादगी और आनंद के साथ सामना होने पर अहंकार स्वतः ही आसानी से ओझल होने लगता है । श्री कृष्ण आनंद के प्रतीक हैं, सादगी के सार हैं और प्रेम के स्रोत हैं।उक्त बातें सरायराशी पूराबाजार में आयोजित भागवत कथा के पंचम दिवस जगद्गुरू रामानुजाचार्य रत्नेश जी महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि कंस के द्वारा देवकी और वासुदेव को कारावास में डालना इस बात का सूचक है कि जब अहंकार बढ जाता है तब शरीर एक जेल की तरह हो जाता है। जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, जेल के पहरेदार सो गये थे। यहां पहरेदार वह इन्द्रियां है जो अहंकार की रक्षा कर रही हैं क्योंकि जब वह जागता है तो बहिर्मुखी हो जाता है। जब यह इन्द्रियां अंतर्मुखी होती हैं तब हमारे भीतर आंतरिक आनंद का उदय होता है। जगद्गुरू जी ने कहा कि समाज में पहले से लेकर आखिरी व्यक्ति का खयाल करके उसके उत्थान के लिए भिन्न-भिन्न आयामों का आविष्कार और स्वीकार करते हुए व्यक्ति की आवश्यकताएँ व महत्ता को समझ के उसका विकास करनेवाला जो परात्पर ब्रह्म हर जगह मौजूद है।कथा से पूर्व व्यासपीठ का पूजन कथा यजमान रामजीत सिंह आयोजक चंद्रभूषण सिंह,ज़िला पंचायत अध्यक्ष आलोक कुमार रोहित,पूर्व ज़िला पंचायत सदस्य अंकुर सिंह ने किया।