अम्माजी मंदिर से गज पर सवार हो निकले भगवान राम

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March 29, 2023

अम्माजी मंदिर में पंच दिवसीय ब्रह्मोत्सव में जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी राघवाचार्य महाराज का हुआ दिव्य प्रवचन

अम्माजी मंदिर में प्रवचन करते रामलला सदन देवस्थान् के पीठाधीश्वर जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी डा राघवाचार्य जी महाराज

अयोध्या। रामनगरी अयोध्या में दक्षिण परम्परा शैली से भगवान का उत्सव बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ मनाया जा रहा है। मंदिर की स्थापना दक्षिण के प्रमुख आचार्य योगीराज पूज्य पार्थ स्वामी जी महाराज ने किया था। अम्माजी मंदिर की वैभव नक्काशी लोगों को अपने ओर आकर्षित करता है। दक्षिण के वैदिक आचार्यों की देखरेख में पंच दिवसीय ब्रह्मोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है।
मंगलवार सांयकाल गज वाहन से भगवान की शोभायात्रा बाजे-गाजे के साथ निकाली गई। इस रथयात्रा में तमिलनाडु से आए पारम्परिक वाद्ययंत्रों को भी शामिल किया गया। रथारूढ़ भगवान की सवारी को चेन्नई व अन्य क्षेत्रों से आए तमिल भाषी श्रद्धालु रस्से के सहारे खींच रहे थे। यात्रा का जगह जगह रामानुजीय परम्परा के मंदिरों के सम्मुख आरती पूजा हो रही थी। परम्परागत रूप से निकाली जाने वाली यह रथयात्रा गोलाबाजार, तुलसी उद्यान होकर मुख्य मार्ग से सब्जी मंडी होकर तोताद्रि मठ, अशर्फी भवन होते हुए पुनः अम्माजी मंदिर पहुंची।
शोभायात्रा निकलने के पहले अम्माजी मंदिर में दिव्य ग्रंथो का पारायण एवं विराजमान भगवान का विधिवत अभिषेक,पूजन किया गया। इसके बाद भगवान को सफेद मोतियों से भव्य दिव्य विशेष श्रृंगार किया गया जिसमें नैनों को बरबस अपनी ओर खींच रहें थे। शोभायात्रा से पहले रामलला सदन देवस्थान् के पीठाधीश्वर जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी राघवाचार्य महाराज का प्रवचन सत्र चला। डा राघवाचार्य जी ने कहा कि विशिष्टाद्वैत दर्शन : रामनुजाचार्य जी के दर्शन में सत्ता या परमसत् के सम्बन्ध में तीन स्तर माने गए हैं:- ब्रह्म अर्थात ईश्वर, चित् अर्थात आत्म, तथा अचित अर्थात प्रकृति। उन्होंने कहा कि वस्तुतः ये चित् अर्थात् आत्म तत्त्व तथा अचित् अर्थात् प्रकृति तत्त्व ब्रह्म या ईश्वर से पृथक नहीं है बल्कि ये विशिष्ट रूप से ब्रह्म का ही स्वरूप है एवं ब्रह्म या ईश्वर पर ही आधारित हैं यही रामनुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत का सिद्धान्त है। प्रवचन विश्राम होने पर अम्मा जी मंदिर के ट्रस्टियों ने स्वामी डा राघवाचार्य जी का विशेष सम्मान किया।

प्रवचन सुनते आचार्य गण व संत साधक

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