चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ जी के राजमहल बड़ा स्थान में रामकलेवा के साथ सीताराम विवाह महोत्सव का हुआ समापन
अयोध्या। रामनगरी में चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ महल यानी भगवान श्रीराम के पिता दशरथ का महल स्थित है, जिसे आज एक सिद्धपीठ माना जाता है। मान्यता के अनुसार, राजा दशरथ ने इस महल की स्थापना की थी। यहां पर श्रीराम और उनके भाइयों ने बाललीलाएं की थीं।इस स्थान पर श्री वैष्णव परंपरा की प्रसिद्ध पीठ एवं बिन्दुगादी की सर्वोच्च पीठ भी स्थित है। सिद्ध संत बाबा श्री रामप्रसादाचार्य जी महाराज ने यहां पुनः मंदिर की स्थापना की और वर्तमान स्वरूप प्रदान किया। सीताराम महोत्सव में आयोजित रामकथा के समापन दिवस पर व्यासपीठ से कथा का महत्व बताते हुए जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य जी कहते है कि अनंत गुणों से युक्त भगवान और दिव्य गुणों से युक्त मैया किशोरी का विवाह हुआ। एक भारतीय संस्कृति परंपरा दोनों के मिलने से अक्षर हुई और उस समस्त मानवीय मूल्यों की स्थापना हुई। उन्होंने कहा कि श्री सीताराम विवाह जगत को एक नया आयाम प्रदान करता है और बेटी के विदाई के समय पिता की सीख कि पति को देवता मानकर उसकी पूजा करना यही भारतीय संस्कृति को पूरी तरह से पुष्ट बनाती है। रामानन्दाचार्य जी ने कहा कि आज पूरे विश्व में एक दिव्य आदर्श विवाह के रूप में यह किसी को माना जा सकता है तो वह श्री सीताराम विवाह। व्यासपीठ का पूजन कथा यजमान नरेश गर्ग व कुसुमलता गर्ग ने किया। इसके बाद मंदिर में चल रहे विवाद महोत्सव का भी भव्य समापन रामकलेवा के साथ हुआ। जिसमें दशरथमहल बड़ास्थान के बिंदुगाद्याचार्य स्वामी देवेंद्र प्रसादाचार्य जी ने भगवान को कलेवा कराया। इसके बाद जगद्गुरु रामदिनेशाचार्य व कार्यक्रम के संयोजक बिंदुगाद्याचार्य के कृपापात्र शिष्य मंगल भवन व सुंदर सदन पीठाधीश्वर महंत कृपालु राम भूषण दास जी महाराज ने भी भगवान के स्वरुपों को कलेवा कराया। यह सारा आयोजन दशरथमहल बड़ास्थान के बिंदुगाद्याचार्य स्वामी देवेंद्र प्रसादाचार्य की अध्यक्षता और श्री महाराज जी के कृपा पात्र शिष्य महंत कृपालु राम भूषण दास जी महाराज के संयोजन में हुआ। इस मौके पर दशरथ राज महल परिवार के संत साधक व रमेश दास शास्त्री, कामधेनु पीठाधीश्वर महंत आशुतोष दास, आचार्य गौरव दास शास्त्री, शिवेंद्र शास्त्री सहित बड़ी संख्या में संत साधक मौजूद रहे।